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हम बचेंगे अगर

hum bachenge agar

नवीन सागर

नवीन सागर

हम बचेंगे अगर

नवीन सागर

और अधिकनवीन सागर

    एक बच्ची

    अपनी गुदगुदी हथेली

    देखती है

    और धरती पर मारती है

    लार और हँसी से सना

    उसका चेहरा

    अभी इतना मुलायम है

    कि पूरी धरती

    थूक के फुग्गे में उतारे है।

    अभी सारे मकान

    काग़ज़ की तरह हल्के

    हवा में हिलते हैं।

    आकाश अभी विरल है दूर

    उसके बालों को

    धीरे-धीरे हिलाती हवा

    फूलों का तमाशा है

    वे हँसते हुए

    इशारे करते हैं :

    दूर-दूरांतरों से

    उत्सुक क़ाफ़िले

    धूप में चमकते हुए आएँगे।

    सुंदरता!

    कितना बड़ा कारण है

    हम बचेंगे अगर!

    जन्म चाहिए

    हर चीज़ को एक और

    जन्म चाहिए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : नींद से लंबी रात (पृष्ठ 9)
    • रचनाकार : नवीन सागर
    • प्रकाशन : आधार प्रकाशन
    • संस्करण : 1996

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