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लगभग अनामंत्रित

lagbhag anamantrit

अशोक कुमार पांडेय

अशोक कुमार पांडेय

लगभग अनामंत्रित

अशोक कुमार पांडेय

और अधिकअशोक कुमार पांडेय

    उपस्थित तो रहे हम हर समारोह में

    अजनबी मुस्कुराहटों और अभेद्य चुप्पियों के बीच

    अधूरे पते और ग़लत नंबरों के बावजूद

    पहुँच ही गए हम तक आमंत्रण-पत्र हर बार

    हम अपने समय में थे अपने होने के पूरे एहसास के साथ

    कपड़ों से ज़्यादा शब्दों की सफ़ेदियों से सावधान

    हम उन रास्तों पर चले जिनके हर मोड़ पर ख़तरे के निशान थे

    हमने ढ़ूँढ़ीं वे पगडंडियाँ जिन्हें बड़े जतन से मिटाया गया था

    भरी जवानी में घोषित हुए पुरातन

    और हम नूतन की तलाश में चलते रहे...

    पहले तो ठुकरा दिया गया हमारा होना ही

    चुप्पियों की तेज़ धार से भी जब नहीं कटी हमारी ज़बान

    कहा गया बड़े क़रीने से—अब तक नहीं पहचानी गई है यह भाषा

    हम फिर भी कहते ही गए और तब कहा गया एक शब्द—ख़ूबसूरत

    जबकि हम ख़िलाफ़ थे उन सबके जिन्हें ख़ूबसूरत कहा जाता था

    ज़रूरी था ख़ूबसूरती के उस बाज़ार से गुजरते हुए ख़रीदार होना

    हमारे पास कुछ स्मृतियाँ थी और उनसे उपजी सावधानियाँ

    और उनके लिए स्मृति का अर्थ गौरव प्राचीन

    एक असुविधा थी कविता हमारे हिस्से

    और उनके लिए सीढ़ियाँ स्वर्ग की

    हमें दिखता था घुटनों तक ख़ून और वे गले तक प्रेम में डूबे थे

    प्रेम हमारे लिए वजह थी लड़ते रहने की

    और उनके लिए समझौतों की...

    हम एक ही समय में थे अलग-अलग अक्षांशों में

    समकालीनता का बस इतना ही भ्रमसेतु था हमारे बीच

    हम सबके भीतर दरक चुका था कोई रूस

    और अब कोई संभावना नहीं बची थी युद्ध में शीतलता की

    ये युद्ध के ठीक पहले के समारोह थे

    समझौतों की आख़िरी उम्मीद जैसी कोई चीज़ नहीं बची थी वहाँ

    फिर भी समकालीनता का कोई आख़िरी प्रोटोकॉल

    कि उन महफ़िलों में हम भी हुए आमंत्रित

    जहाँ बननी थी योजनाएँ हमारी हत्याओं की!

    स्रोत :
    • रचनाकार : अशोक कुमार पांडेय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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