हारता हुआ रंग
harta hua rang
यह इक्कीसवीं सदी की एक सादी सुबह की
कुछ विस्मय भरी ख़बर थी
कि काला जीत गया
इस ख़बर से पूरी दुनिया हैरत में थी
और अपने यहाँ तो हैरत के साथ अपार हर्ष था
इस अपारता ने अपने ब्रह्म को भी लजा दिया
हालाँकि अपना यह ब्रह्म पहले से मुँह छिपाता फिर रहा था
क्योंकि उसका विराट ब्रह्मांड
कुछ समय पहले ही एक गाँव में तब्दील हो चुका था
अब लाख टके का सवाल यह था
कि जब ब्रह्म लगातार हार रहा था
और अपनी ही विराटता और विविधता से बाहर
खदेड़ा जा रहा था
तो एक काला
जो उसी विराट और विविध में
कहीं थोड़ा भूरा, कहीं थोड़ा कत्थई,
कहीं थोड़ा साँवला,
और कहीं अपने भुच्च कालेपन के साथ
खेतों, जंगलों, पहाड़ों और तीसरी, चौथी, पाँचवीं
न जाने कितनी अनगिन दुनियाओं में रहता था
वह काला जीतने की बात सोचने से पहले हार जाता था
हर सुबह उठने पर दिशा-मैदान जाने की ज़रूरत महसूस करने से पहले
उसे अपना पुराना क़र्ज़ चुकाने की
ख़त्म होती जाती मोहलत का ख़याल आता था
एक काला तो बाहर से आयातित कुछ ज़्यादा सफ़ेद
और सस्ते कपास से परेशान था
जिसके मुक़ाबले उसका अपना कपास हार रहा था
अपने कपास के हारने के साथ-साथ वह भी हार रहा था
और अपनी हार और बढ़ते क़र्ज़ से परेशान
वह हर रोज़ रस्सी पर झूल जाया करता था
काला पहाड़ों और जंगलों में
उनके दोस्त की तरह रहता था
पहले की तरह अपने सुख में सुखी
और दुख में दुखी होने की इजाज़त
अब उसे नहीं थी
उसे उसके जंगलों और पहाड़ों से खदेड़ा जा रहा था
वह या तो मिट रहा था
या भाग कर उस सफ़ेद दुनिया में क्रमशः
विलीन हो रहा था
उसकी आत्मा में अब भी थोड़ा काला जीवित था
वह जब तब सिर उठा लेता था
पर उस सफ़ेद दुनिया में सफ़ेद झक्क और चमचमाते
अनगिनत चैनल और अख़बार थे
जिनमें देह और रूह से गोरे मर्द और बालाएँ
गारंटी के साथ गोरा बनाने का लालच देते
आयातित उत्पादों के साथ
उस बचे हुए काले पर पुरज़ोर टूट रहे थे
और काला दुबक कर
गुह्य दिमाग़ के उन कुछ छोटे तंतुओं में छिप रहा था
जहाँ से सिर्फ़ धुआँधार विचार प्रवाहित होते थे
आचरण का संगीत छोड़कर
यह गोरे की बड़ी सूक्ष्म विजय-यात्रा थी
काले के भौतिक रूप के सामने तो ख़ैर, वह असहाय था
सो उसकी विजय-यात्रा का लक्ष्य
एक काला दिल और दिमाग़ था
नहीं नहीं सुधीजन, काले दिल और दिमाग़ वाले
सनातन मुहावरे में वह काला नहीं था
वह सफ़ेद से कुछ अलग और विशिष्ट होने के अर्थ में
और अपनी स्थानीयता में काला था
वह अपने होने भर में काला था
और उस कालेपन में अलग-अलग फूलों की सुगंध थी
सफ़ेद की विजय-यात्रा के आग़ोश में
तरह-तरह के फूल अपने पौधों से उखड़कर
समाते और मसले जाकर
एकरंगे कीचड़ में तब्दील होते जाने को अभिशप्त थे
जहाँ से उनकी अपनी-अपनी ख़ुशबुओं की जगह
एक भद्दी-सी बदबू आने लगी थी
इसी बीच उस सुबह
सात समुंदर पार कहीं किसी एक
काले के जीतने की ख़बर पाकर
सबसे ज़्यादा ख़ुश वे लग रहे थे
जिनकी रूह में साठ सालों में ही
एक गोरा आल्थी-पाल्थी मार कर बैठ गया था
और वे एक आदर्श मेज़बान की तरह
उसकी थाली में डॉलर और पूँजी का भोग परोस रहे थे
पीने का पानी बोतल बंद प्यूरिफ़ाइड और महँगा था
वस्तुतः काले की विजय की इच्छा में कोई शामिल नहीं था
एक काले के जीतने के
सघन सफ़ेद शोर के बीच
काले की जीत एक रहस्य थी
जो सिर्फ़ कुतूहल और मज़ा देती थी!
- रचनाकार : प्रकाश
- प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका
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