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गले मिलते रंग

gale milte rang

विनोद दास

विनोद दास

गले मिलते रंग

विनोद दास

और अधिकविनोद दास

    आह्लाद में डूबे रंग खिलखिला रहे हैं

    इतने रंग हैं

    कि फूल भी चुरा रहे हैं रंग

    आज तितलियों के लिए

    गले मिल रहे हैं रंग

    जब मिलता है गले एक रंग

    दूसरे रंग से

    बदल जाता है उसका रंग

    कुछ पहले से

    जैसे कुछ बदल जाता है आदमी

    दूसरे आदमी से मिलने के बाद

    कितने रंग हैं जीवन के

    क्या फ़र्क़ कर सकते हो तुम

    गुलाल और रुधिर की लालिमा में

    निकल आए हैं घोंसले से बाहर लोग

    आसमान होता जा रहा है लाल

    एक नाटा लड़का अचानक

    फेंकता है उचक कर रंग का गुब्बारा

    भीग जाती है इरफ़ान चचा की दाढ़ी

    इरफ़ान चचा खिलखिला रहे हैं

    खिलखिला रहे हैं उनकी दाढ़ी के बाल

    रंगों की बारिश हो रही है

    और टपक रहा है रंग

    मेरी आत्मा के भीतर

    हवा में गूँज रहा है

    सिर्फ़ एक शब्द बार-बार

    प्यार प्यार प्यार

    और प्यार

    लाज से छिपा रहा है

    अपने रंगे हुए गाल

    स्रोत :
    • पुस्तक : ख़िलाफ़ हवा से गुज़रते हुए (पृष्ठ 10)
    • रचनाकार : विनोद दास
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 1986

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