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नकदौना चिड़िया : दो

nakdauna chiDiya ha do

पार्वती तिर्की

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नकदौना चिड़िया : दो

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    एक

    नकदौना
    घर के आँगन पर
    घूम-घूम कर
    और
    ख़ूब चहक-चहक कर
    आसारि राग के गीत
    गा रही थी —

    पुईं चे चे…
    पुईं चे चे!

    कह रही थी—
    बारिश होने वाली है,
    ख़ूब झईड़ है!

    दो

    नकदौना के आसारि राग के
    गीत के बाद
    ख़ूब बारिश हुई!

    इसके बाद कुड़ुखर ने
    अपनी भाषा में
    बारिश के होने को कहा—

    ‘चेंप पुईंयीं’
    बारिश हुई!

    बारिश के होने पर
    जंगल के फ़ूल
    झकमकाकर खिले

    तब उन्होंने अपनी भाषा में
    फूलों के खिलने को कहा—

    ‘पूँप पुईंदआ’
    फूल खिले!

    इस तरह कुड़ुखर और नकदौना ने
    संवाद की एक साझी भाषा
    निर्मित की,
    और
    आसारि के गीत
    साथ में गाए।

    ~~~

    संदर्भ :

    • आदिवासियों को चिड़ियाँ और पंछियों की गतिविधियाँ बदलते परिवेश की जानकारी देती है। नकदौना अगर आसमान में गीत गाती है, तो बारिश देर से शुरू होने के संकेत होते हैं। यदि नकदौना धरती के क़रीब आकर गीत गाती है, तो यह आदिवासियों के लिए ख़ूब बारिश का संदेश/संकेत होता है।
    • आसारि राग : कुड़ुख आदिवासी गीत अलग-अलग राग में गाए जाते हैं। आषाढ़ के मौसम में गाए जाने वाले राग को ‘आसारि राग’ कहते हैं।
    • झईड़ : बारिश
    • कुड़ुखर : कुड़ुख आदिवासी समूह के लोग

    स्रोत :
    • रचनाकार : पार्वती तिर्की
    • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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