(मैं अब भी गीत सुन कर रुक जाता हूँ)
कविता शुरू करना कठिन है
सीधी तरह कुछ भी नहीं आता आसानी से मेरी क़लम में
सुर पहले पकड़ लेता है मुझे
क्या सुर कान लगाकर सुनने वाला गीत है?
बहुत सावधानी से चलता हूँ कहीं क़दमों की आहट से
मिट न जाएँ सुरों में छिपे हुए गीत की
दो-चार पंक्तियाँ
कोमल होंठ की एक झलक संतरा-धूप।
- पुस्तक : शब्द सेतु (दस भारतीय कवि) (पृष्ठ 30)
- संपादक : गिरधर राठी
- रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक पापोरी गोस्वामी और अरुण कमल
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 1994
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