माँ
man
मैं कभी बतलाता नहीं
पर अँधेरे से डरता हूँ मैं माँ
यूँ तो मैं दिखलाता नहीं
तेरी परवाह करता हूँ मैं माँ
तुझे सब है पता, है न माँ
तुझे सब है पता, मेरी माँ
भीड़ में यूँ न छोड़ो मुझे
घर लौट के भी आ न पाऊँ माँ
भेज न इतना दूर मुझको तू
याद भी तुझको आ न पाऊँ माँ
क्या इतना बुरा हूँ मैं माँ
क्या इतना बुरा, मेरी माँ
जब भी कभी पापा मुझे
जो ज़ोर से झूला झुलाते हैं माँ
मेरी नज़र ढूँढ़े तुझे
सोचूँ यही, तू आके थामेगी माँ
उनसे मैं ये कहता नहीं
पर मैं सहम जाता हूँ माँ
चेहरे पे आने देता नहीं
दिल ही दिल में घबराता हूँ माँ
तुझे सब है पता, है न माँ
तुझे सब है पता, मेरी माँ
मैं कभी बतलाता नहीं
पर अँधेरे से डरता हूँ मैं माँ
यूँ तो मैं दिखलाता नहीं
तेरी परवाह करता हूँ मैं माँ
तुझे सब है पता, है न माँ
तुझे सब है पता, मेरी माँ
- पुस्तक : धूप के सिक्के (पृष्ठ 140)
- रचनाकार : प्रसून जोशी
- प्रकाशन : रूपा पब्लिकेशंस
- संस्करण : 2016
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