आपने मुझे दिया है सिर्फ़ एक कमरा
स्थिर और बंद
मापना तो मुझे है
कि इसमें कितने क़दमों से
मील बनता है
कितने मील चलकर दीवार दीवार नहीं रहती
और सफ़र के अर्थ शुरू होते हैं...
आपने मुझे कुछ हक़ दिए हैं—
घर से जलावतनी का
रोटी के लिए मिट्टी होने का
महबूब के ग़म में आँखें खोने का
और मौत के भयानक कोहरे में गुम हो जाने का
लेकिन एक हक़ और होता है
जो दिया नहीं, सिर्फ़ छीना जाता है...
आपके पास वायदों का समुद्र
मेरे डूबने के लिए
जिसमें तैरती हैं
सुनहरी सपनों की मछलियाँ
लेकिन उपलब्धि का किनारा ओझल होने से पहले
मैंने पकड़ लिया है बेवफ़ाई का चप्पू
और अब आपके पास बचा है
मुझे देने के लिए सिर्फ़ एक पुरस्कार—
मौत
और वह भी बड़े दानवीरो!
आपका स्वयं रखने को जी चाहता है!
- पुस्तक : लहू है कि तब भी गाता है (पृष्ठ 117)
- संपादक : चमनलाल, कात्यायनी
- रचनाकार : पाश
- प्रकाशन : परिकल्पना प्रकाशन
- संस्करण : 2004
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