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मम तन तव रज-राज
मम तन तव रज-राज, तब तन मम रज-रज रमत।करि बिधि-हरि-हर-काज, सतत सृजहु, पालहु, हरहु॥
दुलारेलाल भार्गव
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गारि मंत्र बूका सु रज
गारि मंत्र बूका सु रज, मोहनि मूठि हरी जु।जुल्मि तहू घटि सार्ध त्रय, सो नहिं लगत मरी जु॥
दयाराम
निरखत अंक स्यामसुंदर के
निरखत अंक स्यामसुंदर के बारबार लावति छाती।लोचन-जल कागद-मसि मिलि कै ह्वै गई स्याम स्याम की पाती॥
सूरदास
नहिं मृगंक भू अंक यह
नहिं मृगंक भू अंक यह, नहिं कलंक रजनीस।तुव मुख लखि हारो कियो, घसि घसि कारो सीस॥
रसलीन
अबिचल राज विभीषनहि
अबिचल राज विभीषनहि, दीन्ह राम रघुनाथ।अजहुँ बिराजत लंक पर, तुलसी सहित समाज॥
तुलसीदास
झपटि लरत, गिरि-गिरि परत
झपटि लरत, गिरि-गिरि परत, पुनि उठि-उठि गिरि जात।लगनि-लरनि चख-भट चतुर, करत परसपर घात॥