भूले से भूप अनेक खरे रहौ

bhule se bhoop anek khare rahau

नरोत्तमदास

नरोत्तमदास

भूले से भूप अनेक खरे रहौ

नरोत्तमदास

और अधिकनरोत्तमदास

    भूले से भूप अनेक खरे रहौ ठाढ़े रहौ तिमि चक्ववै भारी।

    देव गंधर्व और किन्नर जज्छ-से रोके जे लोकन के अधिकारी॥

    अंतरजामी वे आपुहि जानिहैं, मानौ यह सिख लेहु हमारी।

    द्वारिकानाथ के द्वार गए सबतें पहिले सुधि लैहैं तुम्हारी॥

    सुदामा-पत्नी अपने पति को निस्संकोच द्वारिकापुरी जाने का आग्रह करती हुई कहती है कि भगवान श्री-कृष्ण अन्तर्यामी हैं। उसकी इस बात को वे मान लें। भले ही उनके द्वार पर अनेक राजा भूले हुए-से खड़े रहते हों, बड़े-बड़े चक्रवर्ती राजा, देव, गंधर्व, किन्नर, यक्ष और लोकपाल भले ही उनके द्वार पर रोक दिए जाएँ किंतु आपके साथ ऐसा व्यवहार नहीं हो सकता। उसे इस बात का पूर्ण विश्वास है कि यदि वे द्वारिकापुरी जाएँगे तो श्रीकृष्ण सबको छोड़कर पहले उन्हीं की ख़बर लेंगे अर्थात् उनका पूर्ण स्वागत होगा और उन्हें मिलने से कोई नहीं रोकेगा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सुदामा-चरित (पृष्ठ 41)
    • संपादक : मोहनलाल 'रत्नाकार'
    • रचनाकार : नरोत्तमदास
    • प्रकाशन : ऋषभरचण जैन एवं सन्तति, नई दिल्ली-2

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