मनु हाली किरसाणी करणी

manu hali kirsani karnai

गुरु नानक

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मनु हाली किरसाणी करणी

गुरु नानक

और अधिकगुरु नानक

    मनु हाली किरसाणी करणी सरमु पाणी तनु खेतु।

    नामु बीजु संतोखु सुहागा रखु गरीबी वेसु॥

    भाउ करम करि जंमसी से घर भागठ देखु॥

    बाबा माइआ साथि होइ।

    इनि माइआ जगु मोहिआ विरला बूझै कोइ॥ ॥रहाउ॥

    हाणु हटु करि आरजा सचु नामु करि वथु।

    सुरति सोच करि भांडसाल तिसु विचि तिसनो रखु॥

    वणजारिआ सिउ वणजु करि लै लाहा मन हसु॥

    सुणि सासत सउदागरी सतु घोड़े लै चलु।

    खरचु बनु चंगिआईआ मतु मन जाणहि कलु॥

    निरंकार कै देसि जाहि ता सुखि लहहि महलु॥

    लाइ चितु करि चाकरी मंनि नामु करि कंमु।

    बनु बदीआ करि धावणी ताको आखै धंनु॥

    नानक वैखै नदरि करि चढ़े चवगण वंनु॥

    शरीर रूपी खेत में हलवाहा रूपी मन को करनी रूपी किसानी करते रहना चाहिए। नाम-स्मरणरूप बीज बोते हुए संतोष रूप सौभाग्य को बोते हुए स्वयं स्वीकृत ग़रीबी (भक्तिभाव) बनाए रखकर श्रम रूपी पानी से सींचते रहना चाहिए। भावनापूर्वक किया गया काम बीजांकुर रूप में जमता-उगता है यानी फसल तैयार होती हैं। उस घर में सुकर्म-जन्य फसल आती देखी जाती है। हे बाबा, माया साथ नहीं जाती। इस माया ने संसार को मोहपाश में बाँध रखा है, जिसकी समझ किसी बिरले को ही हो पाती है।

    जीवन की हाट में साँसों की हानि ना करके सत्तनाम का मूलधन संचित करना चाहिए। भक्ति-ध्यान और चिंतन-विचार के भंडार के बीच में नाम का संग्रह कर। वाणिज्यकर्म करने वाले वणिक से लेन-देन का काम पूरा कर और लाभ प्राप्त कर और मन में प्रसन्न हो।

    शाश्वत सौदागरी, यानी जीवन का निरंतर कार्य-व्यापार सत्य-भाव के घोड़ों पर लादकर ले चल। ख़र्च को अच्छी तरह बाँध और कल पर टालने वाली मन की आदत को मत मान। निरंकार के देश में गंतव्य-स्थल तक पहुँच।

    चित्त लगाकर परमात्मा की चाकरी कर। मन में नाम को सुकर्म समझ। जो बुरे कर्म को दौड़कर रोकता है, उसको सच्चा धन अथवा धन्यवादी कहा जाता है। नानक कहते हैं कि प्रभु की कृपा-दृष्टि का तेज़ चौगुना प्रभावशाली होता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : गुरु नानकदेव वाणी और विचार (पृष्ठ 215)
    • संपादक : रमेशचंद्र मिश्र
    • रचनाकार : गुरु नानक
    • प्रकाशन : संत साहित्य संस्थान
    • संस्करण : 2003

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