जो तुम तोरो राम मैं नहिं तोरौं
jo tum toro ram main nahin toraun
जो तुम तोरो राम मैं नहिं तोरौं।
तुम सौं तोरि कवनि सौं जोरौं॥टेक॥
तीरथ बरत न करौ अदेसा, तुम्हारे चरन कंवल भरोसा।
जहाँ जहाँ जाऊँ तुम्हारी पूजा, तुम सा देव अवर नहिं दूजा॥
मैं अपनी मन हरि सौं जोरयौ, हरि सौं जोरि सबनि सौं तोर्यौ।
सब परहरि तुम्हरी ही आसा, मन क्रम वचन कहै रैदासा॥
हे प्रभु! तुम भले ही मुझसे प्रीति करना छोड़ दो, किंतु मैं तुमसे प्रीति करना नहीं छोडूँगा। तुमसे प्रीति तोड़कर मैं और क़िससे अपना मन जोड़ूँगा! मुझे केवल तुम्हारे चरणकमलों का ही भरोसा है, इसी कारण मुझे तीर्थ−व्रत में विश्वास नहीं है। जहाँ−जहाँ मैं जाता हूँ, वहाँ−वहाँ मैं तुम्हारी पूजा करता हूँ, तुम-सा अन्य कोई देव दूसरा नहीं है। मैंने अपना मन हरि से जोड़ लिया है और अन्य सभी देवताओं से अपना मन हटा लिया है। मन, कर्म और वचन से संत रैदास कहते हैं−हे हरि! सब पर तुम्हारी ही आशा है।
- पुस्तक : रैदास ग्रंथावली (पृष्ठ 221)
- रचनाकार : जगदीश शरण
- प्रकाशन : साहित्य संस्थान
- संस्करण : 2011
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