सुनता नहीं धुन की ख़बर

sunta nahin dhun ki khabar

कबीर

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सुनता नहीं धुन की ख़बर

कबीर

और अधिककबीर

    सुनता नहीं धुन की ख़बर, अनहद का बाजा बाजता।

    रस मंद मंदिर बाजता, बाहर सुने तो क्या हुआ।

    इक प्रेम-रस चाखा नहीं, अमली हुआ तो क्या हुआ॥

    क़ाज़ी किताबें खोजता, करता नसीहत और को।

    महरम नहीं उस हाल से, क़ाज़ी हुआ तो क्या हुआ॥

    जोगी दिगंबर सेवड़ा, कपड़ा रँगे रंग लाल से।

    वाक़िफ़ नहीं उस रंग से, कपड़ा रँगे से क्या हुआ॥

    मंदिर-झरोखा-रावटी, गुल चमन में रहते सदा।

    कहत कबीरा है सही हर दम में साहिब रम रहा॥

    अनहद नाद हो रहा है लेकिन तुझे उसकी धुन की ख़बर नहीं है। मधुर संगीत स्वयं मंदिर के अंदर गूँज रहा है उसे मंदिर से बाहर आकर सुनने से क्या फ़ायदा। अगर तूने प्रेम रस नहीं चखा है तो और सारे नशे करने से क्या फ़ायदा। क़ाज़ी किताबें ढूँढ़ता फिरता है, दूसरों को नसीहत करता है लेकिन अगर वह मर्म को नहीं जानता तो केवल क़ाज़ी होने से क्या फ़ायदा है। योगी अपने कपड़े लाल रंग से रँगते हैं लेकिन अगर वह उस (प्रेम के) रंग से परिचित नहीं हैं तो कपड़े रँगने से क्या होगा। मंदिर में बैठना, झरोखों में झाँकना, अटारियों पर ध्यान लगाना और बाग़-बग़ीचों में सैर करना बेकार है। कबीर सच ही कहते हैं कि साहब तो हर साँस में रमा हुआ है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कबीर बानी (पृष्ठ 64)
    • रचनाकार : अली सरदार जाफ़री
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन प्रा. लि.
    • संस्करण : 2010

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