उत्तर प्रदेश के रचनाकार

कुल: 518

सरल भाषा में देशभक्ति और राष्ट्रीय भावना को अभिव्यक्त करने वाली भारतेंदु युगीन कवयित्री।

संत यारी के शिष्य और गुलाल साहब और संत जगजीवन के गुरु। सुरत शब्द अभ्यासी सरल चित्त संतकवि।

सुपरिचित कवि-लेखक। भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित।

बोधा

1767 - 1806

रीतिमुक्त काव्य-धारा के कवि। प्रेम-मार्ग के निरूपण और ‘प्रेम की पीर’ की व्यंजना में निपुण।

रसिक और संगीत प्रेमी भक्त कवि। 'हरिदासी संप्रदाय' से संबद्ध।

रीतिसिद्ध कवि। ‘सतसई’ से चर्चित। कल्पना की मधुरता, अलंकार योजना और सुंदर भाव-व्यंजना के लिए स्मरणीय।

रीतिकाल के महत्त्वपूर्ण कवि। 'नवरसतरंग' कीर्ति का आधार ग्रंथ। भावों का सरस प्रवाह और गहरी भावुकता, चित्रांकन की मार्मिकता, और चित्रण की संश्लिष्टता के लिए ख्यातनाम।

रीतिबद्ध कवि। नायिकाभेद के अंतर्गत प्रेमक्रीड़ा की सुंदर कल्पनाओं के लिए प्रसिद्ध।

रीतिबद्ध कवि। उपहास-काव्य के अंतर्गत आने वाले ‘भँड़ौवों’ से विख्यात हुए।

नवें दशक के कवि-लेखक। ‘सहसा कुछ नहीं होता’ उल्लेखनीय कविता-संग्रह।

समादृत लेखक और संपादक। हिंदी में संस्मरण विधा के उभार में योगदान। छायावाद के विरोध के लिए चर्चित।

भक्तिकालीन कवि और गद्यकार। हिंदी की पहली आत्मकथा 'अर्द्धकथानक' के लिए स्मरणीय।

मधुरोपासक रामभक्त कवि। काव्य-सौष्ठव, प्रबंध-पटुता और शैलियों की विविधता के लिए ख्यात।

बलवीर

1859 - 1906

भारतेंदु मंडल के कवियों में से एक। भारत जीवन प्रेस के संस्थापक। प्राचीन और लुप्तप्रायः पुस्तकों को पुनः प्रकाशित और संवर्द्धित करने के लिए स्मरणीय।

नई पीढ़ी से संबद्ध कवि-लेखक और अनुवादक। संस्कृत और फ़ारसी साहित्य के अप्रतिम अध्येता। यहाँ प्रस्तुत कविताएँ संस्कृत से स्वयं कवि द्वारा अनूदित।

द्विवेदीयुगीन कवि, पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी। पद्मभूषण से सम्मानित।

भारतेंदुयुगीन प्रमुख निबंधकार, गद्यकार और पत्रकार। गद्य-कविता के जनक और ‘प्रदीप’ पत्रिका के संपादक के रूप में समादृत।

हिंदी-संस्कृत के विद्वान्, साहित्य-इतिहासकार, निबंधकार और समालोचक। हिंदी में संस्कृत साहित्य पर चिंतन के लिए उल्लेखनीय।

'सखी संप्रदाय' के उपासक। सांप्रदायिक नाम 'प्रेमसखी'। कोमल और ललित पद-विन्यास, संयत अनुप्रास और स्निग्ध सरल भाषिक प्रवाह के लिए स्मरणीय कवि।

विलक्षण, किंतु अलक्षित कवि। ‘हरारत में तीसरी नदी’ प्रमुख कविता-संग्रह।

अलंकार ग्रंथ 'भाषाभरण' के रचयिता। सरस दोहों और सटीक उदाहरणों के लिए प्रसिद्ध।

द्विवेदी युग के सुपरिचित व्यंग्यकार, नाटककार और पत्रकार। बालसखा’ पत्रिका के संस्थापक-संपादक के रूप में योगदान।

भारतेंदु युग के सुपरिचित लेखक। इनका स्मरण हिंदी साहित्य के प्रथम उत्थान का स्मरण है।

सुपरिचित कवि। 'कौन जात हो भाई', 'छिछले प्रश्न गहरे उत्तर' और 'बहार के पतझड़' शीर्षक से तीन कविता-संग्रह प्रकाशित।

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