द्रौपदी-विनय

draupadi winay

रामनाथ कविया

रामनाथ कविया

द्रौपदी-विनय

रामनाथ कविया

और अधिकरामनाथ कविया

     

    (दोहा)

    श्री गणपति को ध्यान धर, विश्वेश्वर कर याद।
    जिनके सनमुख होत ही, मिटत अनेक विषाद॥

    रामत चौपड़ राज री, है धिक बार हजार।
    धण सूँपी लूँठाँ धकै, धरमराज धिक्कार॥

    (सोरठा)

    बेध्यो मछ जिण बार, माण दुजोधन मेटियौ।
    खैंचै कच उण खार, थां पारथ बैठ्या थकां॥

    रूठ असी दै रेस, ऊठ महाभड़ ऊठ अब।
    कूट गहै छै केस, दूठ वृकोदर देख रे॥

    भव तूं जाणै भेव, वेध्यो मछ जिण बार रौ।
    दव देव सहदेव, बेल करै तो आ बखत॥

    है तूं बाकी हेक, कर पाणप धर मूँछ कर।
    दूजा सामौ देख, कायर मत हौजै नकुल॥

    पति गंध्रप है पाँच, धरतां पग धूजै धरा।
    आवै लाज न आँच, धर नख सूं कुचरै धवल॥

    पंडव जणिया पाँच, जिकण पेट थारौ जनम।
    जीवत नाडवै लाज, कैरव कच खैंचे करन॥

    अणह्वैती ह्वै आज, हुई न आगै होण री।
    कैरव करै अकाज, आज पितामह ईखतां॥

    धव म्हारा रणधीर, हरण चीर हाथां हुवा।
    नाकां छलियौ नीर, द्रोण सभासद देख रे॥

    मिटसी सह मतिमंद, कलँक न मिटसी भरत कुल।
    अंध हिया रा अंध, पूत दुसासण पाल रे॥

    सकुनी जीते सार, धण अमृत बिख घोलियौ।
    होणहार री हार, करसी भारत रौ कदन॥

    लौ या बिरियां लाख, धर थांरी थे ही धणी।
    निंदित त्रिक हकनाक, कुरुकुलभूखण मत करो॥

    गरडी गंधारीह, जिण नै पूछौ जाय नै।
    सो कहसी सारीह, क्रत अक्रत री कैरवाँ॥

    ब्यास बिगाड़्यौ वंस, कैरव निपज्या जेण कुल।
    असली व्हेता अंस, सरम न लेता सांवरा॥

    निलजी कैरव नार, के ऊभी मुलक्या करै।
    आसी कुटुँब उधार, देणा सो लेणा दुरस॥

    जोवौ जेठाणीह, देराणी थैं देखल्यौ।
    होवै लजहाणीह, बीती मो तो बीतसी॥

    सासू मंत्र ज साज, पूत जण्या जे पार का।
    ज्यां री पारख आज, सांची ह्वैगी सांवरा॥

    पूत सास रे पांच, पांचु इ मौने सूंपिया।
    जिण कुल री आ जांच, सरम कठै रै सांवरा॥

    गंगा मछगंधा'र, कुण जाई ब्याही कठै।
    घर कुल रा ऐ घाट, सरम कठा सूं सांवरा॥

    कहो पिता हौ कौण, मात गरभ कुण मेलियौ।
    देखै बैठो द्रोण, सो की अचरज सांवरा॥

    भीखम मात अभाव, मात गंग कींकर मनै।
    सो पखहीण सभाव, सेवट सिटग्यौ सांवरा॥

    ससुर नहीं कोइ सास, अंध सभा नृप अंध री।
    होणहार उपहास, देखौ भीखम द्रोण रौ॥

    देवकी’र वसुदेव, पख ऊजल माता-पिता।
    जिण कुल जनम अजेय, सो किम बिसर्यौ सांवरा॥

    गज नै ग्रहियौ ग्राह, तैं सहाय हुय तारियौ।
    बारी मो बैराह, बैठौ व्हे वसुदेव रा॥

    रटियौ हरि गजराज, तज खगेस धायौ तठै।
    आ कँइ देरी आज, करी इती तैं कान्हड़ा॥

    लड़कापण प्रहलाद, आद अंत कीधौ अवस।
    उठ री राखी याद, सिंघनाद कर सांवरा॥

    अबला बालक एक, अरज करूं अभी अठै।
    टाबर ध्रुव री टेक, तैं राखी वसुदेव तण॥

    लारै भगतां लाज, लंकागढ रघुपत लड़्या।
    करण विभीखण काज, सिर दस काट्या सांवरा॥

    रलियौ जल सुरराज, धर अंबर इक धार सूं।
    करण अभय ब्रज काज, गिरि नख धार्यौ कान्हड़ा॥

    विप्रु सुदामा बार, कोड़ां धन लायौ किसन।
    बधण चीर विसतार, सरदा घटगी सांवरा॥

    ब्रज राखी ब्रजराज, इंद्र गाज कर आवियौ।
    लेवै खल मो लाज, आज उबारो ईसरा॥

    जाण किसी अणजाण, तीन लोक तारणतरण।
    है द्रौपद री हण, सरम धरम री सांवरा॥

    अब छोगाला ऊठ, काला तूँ प्रतपाल कर।
    पांचाली री पूठ, चढ रखवाली चतुरभुज॥

    हारया कर हल्लोह, मछ अरजुन बेध्यौ मुदै।
    दिन उण रो बदलोह, साझै मोसूं सांवरा॥

    आसा तज आयाह, पाछा कौरव पावणा।
    उण दिन रा दायाह, साझै मोसूं सांवरा॥

    लेवै अबला लाज, सबला हुय बैठां सको।
    गरढ सभा पर गाज, सुणतां रालौ सांवरा॥

    द्रौपद हेलौ देह, बेगौ आ वसुदेव रा।
    लाज राख जस लेह, लाज गियां व्रद लाजसी॥

    सारौ मिलग्यौ साथ, कूड़ बिचारी कैरवां।
    हरि! इज्जत रै हाथ, सह मिल घालै सांवरा॥

    ऐ मिल दुसटी आज, पाल अनारी पालटै।
    लागै कुल ने लाज, सांच रखाज्यौ सांवरा॥

    ओठादिन आयाह, खोटा मग कैरव खड्या।
    जुध पंडवजायाह, साय जिताया सांवरा॥

    सासू आरया साल, जाया पांचू जो मरद।
    खोटौ रचियौ ख्याल, सह धर आया संवरा॥

    मो मन पड़ियौ मोच, आव कह्यां आयौ नहीं।
    साड़ी रौ नहँ सोच, सोच विरद रौ सांवरा॥

    लेतां तिरिया लाज, पति बोदौ आडौ पड़ै।
    ऐ नर बैठा आज, सिंघ सिटाया स्याल सा॥

    होसी जग में हास, द्रोपदी नागी देखतां।
    साड़ी पहली साँस, सटकै लीजे सांवरा॥

    देखै भीखम द्रोण, जेठ करण देखै जठै।
    को, हर, वरजै कौण, लाज-रुखाला लाज लै॥

    रजस्वला नारीह, कथा गोप किण सूं कहूं।
    समझौ हरि सारीह, (म्हारी) सरम मरम री सांवरा॥

    द्रोपत दुखियारीह, पूकारी अबलापणै।
    मदती हर म्हारीह, करणाकर करस्यो कराँ॥

    मिनिया मंजारीह, अगन प्रजाली ऊबर्या।
    वरती मो बारीह, सुणै क बहरो साँवरा॥
     
    दुसटां रचियौ दाव, द्रौपद नागी देखवा।
    अब तो बेगो आव, साय करण नै सांवरा॥

    चित में दुस्ट कुचाव, औ निलज्ज लायौ अठै।
    अब गिरधर झट आव, साय करण नै सांवरा॥

    दोख्यां लाग्यौ दाव, द्रोपत-सुत विनवै खड़ी।
    अब तो बेगो आव, साय करण नै सांवरा॥

    होय सभा हमगीर, दुय हाथां खैंचे दुसट।
    चल्यौ पुराणो चीर, सिर स्यूं चाल्यौ सांवरा॥

    तैं अहल्या तारीह, सिला हुती पति स्राप सूं।
    वरती मो वारीह, सोवै क जागै सांवरा॥

    आगै भूप अनेक, खप्पाणा रिण खेत में।
    टींटोड़ी री टेक, सखरी राखी सांवरा॥

    चित में कीजे चेत, बेगो आ वसदेव रा।
    खरो मूझ लज-खेत, ऊभां धणियाँ ऊजड़ै॥

    धींगां देवै ध्यान, रांकां सू रूठो फिरै।
    पासे नहँ परधान, समझावै कुण सांवरा॥

    लाखा ग्रह री लाय, तें पंडव राख्या त दिन।
    बड़ा किया बन मांह, साथ न छोडयौ सांवरा॥

    पाल्यो ज़हर पिवाय, भीम गंग पटक्यो हुतो।
    पनग लोक परणाय, साथे लायो सांवरा॥

    तन मो तिल तेतोह, आज सभा मझ ऊघड़ै।
    हर-पंडव हेतोह, हूँ जाणूँ होतो नहीं॥

    वहियो गज वारीह, तूं रुकमण प्यारी तजे।
    मदती हर म्हारीह, धजबंधी धारी नहीं॥

    सुरभी दीनो स्राप, पाप तिको भुगतण पड़यो।
    एक रिछक हर आप, सदा बचायी सांवरा॥

    पंच महा बरवीर, वचन कपट सूं बांधिया।
    जिण दिन खिंचसी तीर, दिन उण आंख्यां देखसी॥

    द्रौपद दक्कालाह, दुसट-सभा-बिच दाखवै।
    लायौ नंदलालाह, चीर दुसाला चौगणा॥

    हारयौ खैंचणहार, हर देतो हारयौ नहीं।
    बध्यो चीर बिसतार, बाँवन हाथां बैंत ज्यूं॥

    खींचो खींचणहार, मन धोको राखे मती।
    समपै सरजणहार, सही बजाजी सांवरो॥

    धरती पड़यो ढिंगास, अंबर अंबर सूं अड्यो।
    आयो पूरण आस, सही बजाजी सांवरो॥

    मंड्यो नंदघर मेल, ब्रज में बँटै बधावणा।
    तट जमाना रै तीर, रमियौ वसुदे राव उत॥

    काजल माच्यौ कीच, जल काजल भेला जठै।
    बसियौ हिवड़ा बीच, रसियौ वसुदे राव उत॥

    पहली केस खिंचाय पुनि, अवस बढायौ चीर।
    आयौ लाज गमाय नै, आखर जात अहीर॥

    पण राखण आया प्रभू, भल अबला री भीर।
    दस हज़ार गज बल घटयौ, घटयौ न दस गज चीर॥

    पांडव ब्रद पालेह, ऊजाले ब्रद आगलो।
    देखो नँद ग्वालेह, काले मो ऊपर करी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी (पृष्ठ 17)
    • संपादक : कन्हैयालाल सहल
    • रचनाकार : रामनाथ कविया
    • प्रकाशन : बंगाल-हिंदी-मंडल, कलकत्ता
    • संस्करण : 1953

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए