अपनी यातना में

apni yatana mein

सविता सिंह

सविता सिंह

अपनी यातना में

सविता सिंह

और अधिकसविता सिंह

    वह सो चुकी थी कई नींदें

    कई दिन और रातें बीत चुकी थीं

    कई ज़िंदगियाँ बन और बिखर चुकी थीं इस बीच

    लेकिन एक सपना था जो अब भी झिलमिला रहा था

    जिसकी झालर को पकड़ वह उठी थी

    और उन फूलों को ढूँढ़ने लगी थी

    जिन्हें सीने से लगा वह सोने गई थी

    जागने पर यह संसार उसे अब भी

    बहुत जाना-पहचाना ही लगा था

    फूल भले अनुपस्थित थे

    लेकिन उसके प्रेमी वहाँ खड़े थे बाँहें फैलाए

    हर हाल में प्रेम बचा रहता है उसने सोचा था

    फिर आह्लादित हो ख़ुद से कहा था

    आसमान को छत और धरती को बिस्तर बना

    समुद्र की तरह कोई गीत गाना चाहिए

    तभी उसका एक प्रेमी उसे बालों से पकड़

    खींचता हुआ ले गया नींद और सपनों से बाहर

    समेटे हुए अपने सीने में चुराए उसके सारे फूल

    जहाँ सब कुछ नया था अपनी यातना में

    स्रोत :
    • पुस्तक : नींद थी और रात थी (पृष्ठ 26)
    • रचनाकार : सविता सिंह
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2005

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