आप गुलाब कहते हैं जिन्हें

aap gulab kahte hain jinhen

नाज़िश अंसारी

नाज़िश अंसारी

आप गुलाब कहते हैं जिन्हें

नाज़िश अंसारी

और अधिकनाज़िश अंसारी

    आप गुलाब कहते हैं जिन्हें

    वे उग ही आती हैं हर बार

    बिन खाद-पानी और देखभाल के

    वे बचा लेती हैं ख़ुद को

    अल्ट्रासाउंड की पराबैंगनी किरणों से

    गर्भपात के तमाम हथकंडे झुठला कर

    वे जन्म ले ही लेती हैं

    समूची-सही-सलामत

    हाँ, वे ही

    आप गुलाब देते हैं जिन्हें

    प्रेमिका कहकर

    फिर प्रेम-प्रेम कहते-करते

    चाहते हैं मसल देना

    स्लीपवेल के गद्दों पर

    आटे की तरह गूँथे जाने के बाद भी

    सख़्त मर्दानी बाँहों में

    वे कर ही लेती हैं भरपूर नींद की तलाश

    हाँ, वे ही

    जो लिखती हैं सूई से

    रंग-बिरंगे रेशम से

    'गुड नाइट' तकियों पर

    उन्हीं तकियों पर मुँह गड़ा कर

    दहाड़ें सारी दफ़ना कर

    सिसक-सिसक कर गुज़ार देती हैं सारी रात

    हाँ, वे ही

    ऊनी कपड़ों के साथ जो

    दबा देती हैं अपनी सारी क़ाबिलियत

    बक्से तले

    फ़िनायल की गोलियों की तरह

    और बहा देती हैं शौचालय में

    बच्चे की शौच के साथ

    अपनी सारी हँसी

    कि मासूमियत से कभी गृहस्थी नहीं चली

    वे ढूँढ़-ढूँढ़ कर

    उचक-उचक कर

    छुड़ाती हैं जाले

    साफ़ करती हैं बेसिन-पाख़ाने

    रसोई की नालियाँ

    वहाँ सड़क पर फाड़ दी जाती है उनकी इज़्ज़त

    मर्दों के बहाने पड़ती हैं उन्हें ही गालियाँ

    फिर भी वे ओढ़े रहती हैं होंठों पर

    ठंड की धूप-सी झूठी मुस्कान

    या लू-सी तीखी हँसी

    शायद सब पेट से ही

    सीख कर आती हैं ऐसी जादूगरी

    अपनी तमाम चालाकियाँ भिड़ा कर

    वे जीत लेती हैं आपका दिल

    आप कह उठते हैं गुलाब उन्हें

    लेकिन मैं बेहया कहूँगी!

    स्रोत :
    • रचनाकार : नाज़िश अंसारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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