मेरा गाँव ग़रीब है

mera ganw gharib hai

बलबीर सिंह 'रंग'

बलबीर सिंह 'रंग'

मेरा गाँव ग़रीब है

बलबीर सिंह 'रंग'

और अधिकबलबीर सिंह 'रंग'

    नगर-नगर बढ़ रही अमीरी, मेरा गाँव ग़रीब है।

    अपना गाँव ग़रीब है, सबका गाँव ग़रीब है

    ‘यहाँ चेतना दफ़न हो गई चिंता के श्मशान में

    गलियारे में बचपन कटता, तरुणाई सुनसान में

    अंधकार का राज यहाँ है, सौ-सौ कोस प्रकाश है

    आग लगी खेतों में, पानी बरस रहा खलिहान में

    जनहित सारा सौंप दिया है दलपति के अधिकार में

    ‘हलपति’ की अब कौन सुनेगा दिल्ली के दरबार में

    इससे बढ़कर प्रजातंत्र का हो सकता सम्मान क्या

    स्वामी पैदल मारे फिरते, सेवक चलते कार में

    बरबादी का अद्भुत कारण आबादी इंसान की

    कैसी दुर्गति हुई अमर बापू के हिंदुस्तान की

    अभिशापित मानवता श्रम के मुँह की ओर निहारती

    वरदानों के भंडारी को चिंता है श्रमदान की

    कुछ करे सो बड़ा आदमी, यह सिद्धांत अजीब है

    नगर-नगर बढ़ रही अमीरी, मेरा गाँव ग़रीब है

    अपना गाँव ग़रीब है, सबका गाँव ग़रीब है

    गाँव-गाँव में बिजली कर दी खेत-खेत में नीर है

    फिर भी मूढ़ किसान आज का नाहक हुआ अधीर है

    दिन पर दिन बढ़ते जाते हैं उत्पादन के आँकड़े

    सेवा करना नहीं किसी के बाबा की जागीर है

    धान उगाओ वैसे जैसे बोते हैं जापान में

    मेहनत ऐसी करो कि जैसी है रूसी मैदान में

    दीया तले है अगर अँधेरा इसकी चर्चा व्यर्थ है

    नाम हमारा पूछो अमरीका या इंग्लिस्तान में

    लोग कहा करते हैं यह तो आज़ादी है नाम की

    क्योंकि सुबह के भूले को भी ख़बर आती शाम की

    रमते फिरें विनोबा भावे, टंडन जी बैठे रहें

    राजभवन में करते हैं हम बातें सेवाग्राम की

    स्वतंत्रता के दाताओं से मिली यही तहज़ीब है।

    नगर-नगर बढ़ रही अमीरी, मेरा गाँव ग़रीब है

    अपना गाँव ग़रीब है, सबका गाँव ग़रीब है।

    विधि का कौतुक कलाकार को तन दे दिया किसान का

    और साथ ही साथ दे दिया मन सम्राट महान का

    कानूनों के लिए न्याय है, सत्य शपथ के वास्ते

    विध्वंसों के साथ कर लिया समझौता निर्माण का

    जोरावर जाटव के घर में बीमारी घर कर गई

    कल ही उसकी सुघड़ पतोहू तड़प-तड़प कर मर गई

    संयत होकर कहता हूँ मैं, इसे लो आवेश में

    बिना दवा के मरी अभागिन धनवंतरि के देश में

    जब तक नंगे बदन ‘बिहारी’ या ‘गोपी’ मोहताज है

    तब तक कोई कैसे कह दे सचमुच हुआ सुराज है

    पर निराश होने की कोई बात नहीं है साथियो

    सदा नहीं रह सकती ऐसी हालत जैसी आज है

    क्रांति पर्व के उद्घाटन का उत्सव बहुत क़रीब है

    नगर नगर बढ़ रही अमीरी, मेरा गाँव ग़रीब है

    अपना गाँव ग़रीब है, सबका गाँव ग़रीब है

    स्रोत :
    • पुस्तक : कविता सदी (पृष्ठ 291)
    • संपादक : सुरेश सलिल
    • रचनाकार : बलबीर सिंह 'रंग'
    • प्रकाशन : राजपाल एंड संस
    • संस्करण : 2018

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