एक लड़ाई

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कुलदीप मिश्र

कुलदीप मिश्र

एक लड़ाई

कुलदीप मिश्र

और अधिककुलदीप मिश्र

    ये हिंदुस्तान है और ये मार्च का महीना है

    और एक फ़ैसला आपको करना है

    ठीक है कि फ़िज़ा ठीक नहीं

    मालूम है कि माहौल डर का है

    बदसूरत सन्नाटे की आहट सुनी हमने

    धुकधुकी है छाती के भीतर

    फ़िक्र है, बुज़ुर्गों की, बच्चों की

    दुकानें बंद हैं

    सड़कें वीरान हैं

    दूसरे शहर में पड़ी माँओं की रातें करती हैं साँय-साँय

    कोई घर नहीं आता

    दोस्तों को भींच लेने को तरसती हैं बाज़ुएँ

    बूढ़ी दादी कहती हैं, मुलुक को किसी की नज़र लग गई है

    डर लगता है ना?

    पर वो बता रहे हैं कि सफ़ेद कोट पहनने वाले

    कुछ पढ़ाकुओं ने, प्रयोगशालाओं में जान दे रक्खी है

    वो बता रहे हैं कि महज़ कुछ हफ़्तों की क़ैद के बाद

    कई दिशाओं से रही हैं राहत की महक

    वो बता रहे हैं कि स्पेन में सलाख़ें तोड़कर

    बालकनियों से निकला है एक संगीत

    उम्मीदों के रौशनदान अब भी खुले हैं

    जो क़ैद में हैं वो ये संगीत सुन रहे हैं

    कोई मुल्क है दुनिया के किसी कोने में डेनमार्क करके

    जहाँ सरकार ने सेठों से कहा है कि वे नौकरियाँ लें, तनख़्वाह हम से ले लें

    मेरे पड़ोस की एक बच्ची ने फ़ोन कर दिया है अपने दोस्तों को

    कोरोना चला जाएगा तो फिर से खेलेंगे चोर-पुलिस का खेल

    दिमाग़ का एक डॉक्टर मुफ़्त में दे रहा है मशविरे

    कि यहूदियों के तजुर्बे पढ़ो जहाँ उम्मीद का एक कण दीखता था

    सारी दुनिया सख़्ती और नर्मी, दोनों का सही इस्तिमाल सीख रही है

    सारी दुनिया में लोग इस बीमारी से सबक़ ले रहे हैं

    सारी दुनिया समझ चुकी है कि ये लड़ाई बंदूक़ों और जहाज़ों की नहीं, धीरज और प्रेम की है

    और ये हिंदुस्तान है जिसने सब देखा हुआ है

    बंगाल के अकाल से

    भुज के भूकंप तक

    सुनामी-पुनामी सब झेली हुई है

    बस जिगरा चाहिए, करुणा चाहिए

    और देखना बहुत जल्द होगा

    जब हमारी बसों में प्रेमी हाथ पकड़कर बैठेंगे

    और धक्का लगने पर चूमेंगे चोरी-चोरी

    देखना बहुत जल्द होगा जब दफ़्तर की सारी थकानें हारेंगी

    जब मिल बैठेंगे कई साल पुराने दोस्त

    फिर से आसमाँ गुलाबी होगा

    मंदिरों की घंटियों से, अज़ान के स्वरों से

    सड़कों पर लकड़ी की डंडी से टायर दौड़ाते बच्चे लौटेंगे

    लौटेगा कीर्तन को जाती औरतों का शोर

    और गोलगप्पे वाले को दस का नोट पकड़ाती लड़कियाँ

    लौटेंगे प्लास्टिक की कुर्सियों से सड़कें घेरे बैठे बुज़ुर्गों के ठहाके

    ये सब विरामचिह्न हैं हमारे भागते हुए शहरों के

    ये सब लौटेंगे

    बस ये हिंदुस्तान है और ये मार्च का महीना है और आपको एक फ़ैसला करना है

    फ़ैसला एकांत के अभ्यास का

    और अपने समाज पर विश्वास का

    वसंत कोई प्लेन या ट्रेन में बैठकर नहीं आता

    वो चला आएगा आपके बंद पड़े घर की खुली हुई खिड़कियों से

    कुछ दिन घर में रहिए जहाँ अपने रहते हैं

    इसी बहाने फ़ुर्सतों को जी लीजिए

    शीशे में देखकर फिर से बनाइए चेहरे

    फिर से बचपन वाले क्रिकेट शॉट, हाथ से मारिए हवा में

    पुरानी किताबों की धूल झाड़िए ज़रा

    अलमारी पर चिपकी बिंदियों का गोंद छुड़ाइए ज़रा

    डर है तो हो पर नफ़रत हो

    क़ैद है तो हो, अकेलापन हो

    शक है तो हो, स्वार्थ की जगह हो

    बीमारी है तो होगी अपनी जगह

    आत्मा बीमार हो

    तो ये हिंदुस्तान है जनाब और ये मार्च का महीना है

    और एक फ़ैसला आपको करना है

    तो जाइए पहले हाथ धो आइए और

    पड़ोसी को फ़ोन करके वाई-फ़ाई ले लीजिए

    और चिल्लाइए खिड़कियों से

    या धुन बनाकर गाइए इसे

    कि किसी का हाथ छूना नहीं है

    पर किसी का साथ छोड़ना नहीं है

    और कल जब सब कुछ खुलेगा

    तो देखना हमारे इन्हीं आसमानों में उड़ते हुए पंछी कहेंगे

    कि कमबख़्त इंसानों की इस ज़िद्दी ज़ात ने

    एक लड़ाई और जीत ली।

    स्रोत :
    • रचनाकार : कुलदीप मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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