अज्ञातवास

agyatwas

शहंशाह आलम

शहंशाह आलम

अज्ञातवास

शहंशाह आलम

और अधिकशहंशाह आलम

    इस टूटी हुई नाव में रहता हूँ मैं इन दिनों

    अकेला जहाँ कोई नहीं है पानी और सिर्फ़ पानी के सिवा

    कोई मनुष्य कोई खंडहर मेरी कायरता

    सुना था सच्चरित्र और त्यागी तपस्वी ऐसे ही किसी एकांत में

    ऐसे ही स्थानों पर तपस्या किया करते थे सबकी दृष्टि से छिपकर

    देवता तक किसी पेड़ की ओट से देख भर लिया करते थे

    कि तपस्या का फल पाकर वे उनके समकक्ष खड़े नहीं हो जाएँ

    लेकिन मेरे इस एकांतवास में कोई तपस्वी मिला कोई देवता

    वे स्त्रियाँ मिलीं जो भादों महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को

    व्रत रखती थीं और देवताओं से डरते हुए

    उन्हीं का शरणगृह चाहती थीं भय से भरकर

    मैंने अपनी इच्छा से लिया था यह एकांतवास नदी के बीचोबीच

    एकांत को स्मरणीय-वरणीय मानकर

    अपने एकांत को सज्जित करने जहाँ आदिम भय हो

    आदिम कोई धर्म जो डँसता रहता आया था

    एकांत बस एकांत का जाप करने के बावजूद

    कोई था ज़रूर कोई था मेरे इस अज्ञातवास में

    जो मेरे इस नावघर को मेरे इस एकांतवास को मेरे इस कमलासन को

    ढहाना चाहता था मटियामेट करना चाहता था

    मेरे भीतर जन्म ले रहे नए शब्द से नए छंद से नए वृक्ष से

    नए पुरुष से नए विरोध से भयातुर।

    स्रोत :
    • पुस्तक : थिरक रहा देह का पानी (पृष्ठ 148)
    • रचनाकार : शहंशाह आलम
    • प्रकाशन : बोधि प्रकाशन
    • संस्करण : 2018

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