चरित्रहीनता : एक

charitrhinta ha ek

संदीप रावत

संदीप रावत

चरित्रहीनता : एक

संदीप रावत

और अधिकसंदीप रावत

    इंसान का चरित्र

    एक पत्ते का चुपचाप अपने समय से सूखकर छूटना है

    एक ऊँचे झरने का शून्यशिला पे गिरना—

    सारे ऊँचे-नीचे चरित्रों को अपने नाद से बहरा करता

    रंग और फुहारों से अंधा करता हुआ

    धीमे धीमे और कभी अचानक

    सारे चरित्र मुझे छोड़कर चले गए

    चरित्रहीनता एक जीवंत शून्यता होती है जिसे

    जाना नहीं जा सकता

    सारा अस्तित्व चरित्रहीनता के कारण ही अस्तित्व में आया है

    लोगों का दुःख बदलते चरित्र का दुख है चरित्रहीनता का नहीं

    चरित्र से ख़ाली हृदय में सारे चरित्र निर्द्वंद्व बैठ जाते हैं

    चरित्रहीनता हमेशा एक मृत्यु में से होकर गुजरती है

    चरित्रहीनता एक अछूतापन है

    चरित्रहीन इंसान सिर्फ़ दुनिया की ही नहीं सुनता

    पहाड़ों समंदरों हवाओं और पंछियों की भी सुनता है

    मेरे पास एक चरित्रहीनता के सिवाय और कुछ नहीं

    मैं किसी चरित्रहीन स्त्री की चरित्ररहित नींद से

    चरित्रहीन जन्मता हूँ और चरित्र दिखलाता हुआ

    किसी चरित्रहीन स्त्री की जागृति में

    चरित्रहीन मर जाता हूँ

    प्रेम चरित्र का अभाव है इसलिए

    इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता

    सारे चरित्रों को ख़ुद से रिहाई केवल प्रेम से मिलती है

    चरित्रहीनता स्त्री या पुरुष की नहीं होती

    सवाल होती है, कोई जवाब

    चरित्रहीनता एक कोरा दर्पण होता है

    दर्पण किसी चरित्र को याद नहीं रखता

    सारे चरित्र अतीत की कहानियों में क़ैद रहते हैं

    चरित्र हमेशा चरित्रहीनता यानी अपनी नामौजूदगी को

    काले शून्य की तरह देखता है और चरित्रहीनता

    सारे चरित्रों को अपने भीतर

    बनते-टूटते

    सपनों-सा देखती है

    वे जो कारण खोजते हैं उनसे मुझे अकारण कहना है कि क्षणभंगुरता चरित्रहीनता का एकमात्र कारण होती है जिसका कोई कारण नहीं और क्षणभंगुरता शून्य की सृजनात्मकता है

    असीमित प्यार के बग़ैर कोई चरित्रहीन नहीं हो सकता

    चरित्रहीन होने का कोई मार्ग, कोई कारण नहीं होता

    चरित्रहीन इंसान जब आँखें उठाकर देखता है तो दुनिया को डर लगता है

    चरित्रहीनता के चारों तरफ़ असंख्य चरित्र, गहरे अँधेरे में डूबे—

    हँसते-रोते-झगड़ते-ऊबे रहते हैं

    मेरी याद में

    एक चरित्रहीन स्त्री है यानी

    एक कोरापन है

    एक सूरज है

    चंद सीढ़ियाँ और

    फूल की सी सरलता का अनजानापन है

    इक चरित्रहीन स्त्री की याद से भर जाना

    सब कुछ से भर जाना है जिसका

    कोई अर्थ नहीं होता जैसे प्यार का

    एक चरित्रहीन इंसान

    अनंत में

    बिजली की कौंध भरी

    पानी की भारी बूँद की तरह गिरता है

    मर्यादाओं के रुग्ण सूखे हाथों को जलाता हुआ

    अनंत के शांत जीवंत हाथों में

    इंसान हमेशा चरित्रहीनता के सामने खड़ा होता है

    मैं आसमान देखते हुए स्वयं को चरित्रहीन पाता हूँ

    चरित्रहीनता स्त्री के रूप में

    मर्दों से लिपटती है भीड़ की मर्यादाओं से

    वह स्वयं की रौशनी में खो जाती है क्योंकि

    एक चरित्रहीन इंसान के भीतर से

    भेड़ों की आवाज़ें नहीं आतीं

    चरित्रहीनता चलने की पुरानी सीख को भूलना है

    वह सीमाओं को नहीं बल्कि अनंत को लाँघती है

    चरित्रहीनता ईश्वरहीन होती है सत्यहीन नहीं

    चरित्रहीनता

    जब इंसान के रूप में

    कहीं अकेले बैठती है तब

    अँधेरा सबसे अधिक गहराता है मगर कोई भी शब्द

    उसे राह नहीं भटका पाता

    तब ओस की एक बूँद से पूरी कायनात में

    जीवंतता के कंपन उमड़ पड़ते हैं

    तब तितलियों के साथ नृत्य की कामना उमड़ती है

    आँसू भरी आँखें लिए हुए

    चरित्रहीनता को चिड़ियों की तरह घने जंगल रास आते हैं

    चरित्रहीन इंसान शब्द-अर्थहीन होता है

    उसके आस-पास समय नहीं होता

    ऊँचाइयाँ निचाइयाँ नहीं होतीं

    बाक़ी सभी लोगों की तरह वह भी ‘कोई नहीं’ होता जैसे मैं

    यूँ भी होता है कि समय यानी ख़ुद से छूटकर

    चरित्र को अपनी चरित्रहीनता के दर्शन होते हैं जिससे

    वे अंधे हो जाते हैं

    चरित्रहीन हृदय से चरित्रहीन होने की महक तक नहीं आती

    केवल आँधी की तरह एक शांत रस हृदय में उमड़ता रहता है

    चरित्रहीन इंसान का शब्दकोश

    कड़कती बिजलियों

    गुलाबों

    हवा

    बाघ

    बाँसुरी और उसकी आवाज़ों

    गिद्धों और उनकी आँखों

    हंसों

    झीलों और उनमें डूबे पत्थरों से भरा होता है

    ऐसे शब्दकोश को कवि और संगीतज्ञ जीवन भर खोजते फिरते हैं

    उसका सपना देखा करते हैं

    ऐसे शब्दकोश में खोजने से कुछ नहीं मिलता

    बल्कि मिला हुआ खोता जाता है और

    स्वतंत्रता की गहराई आब-ओ-हवा की तरह

    हर तरफ़ गूँजती सुनाई देती है—झीं-झीं

    हुम्म… हुम्म…

    स्रोत :
    • रचनाकार : संदीप रावत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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