मैं तुझे छूने को था

main tujhe chhune ko tha

सुरजीत पातर

सुरजीत पातर

मैं तुझे छूने को था

सुरजीत पातर

और अधिकसुरजीत पातर

    मैं तुझे छूने को था

    बहुत चीत्कार हुआ अँधेरे तड़प उठे

    बिलखे शंखनाद

    घड़ियाल खंड़क उठे

    चूल्हों से लपटें निकलकर

    माओं, पत्नियों, बहनों

    के सीनों सुलगीं

    एक औरत खुले बाल

    बिलखी और दौड़ पड़ी

    उस क़हर से काँपे

    तमाम देवताओं के पत्थर

    और राजाओं के मुकुट

    सद्गुरु हुए कुपित

    हँस पड़े मेरे चेले

    खींच लिया मैंने अपना हाथ

    तारों और तरबों से

    हटा लिए मैंने होंठ

    राधा मोहने वाली

    इस मधुर बाँसुरी से

    डर गया मैं रुक्मिणी के

    ख़ामोश रुदन से

    मेरे क़रीब आया

    एक उजला पन्ना :

    कुछ भी लिख दे मुझ पर

    कर दे नेकी-बदी की

    कोई नई हदबंदी

    क़ुदरत और सभ्यता का

    एक और सुलहनामा

    अपनी इच्छा का तू

    एक नया उपनिषद् रच दे

    मुझ पर कुछ भी लिख दे

    तू ख़ुद मुक्त हो जा

    उसको भी मुक्त कर दे

    तू ख़ुद तो पानी बने

    और उसके सीने में काठ सुलगे

    यह तो अच्छा नहीं

    मेरे क़रीब आया

    एक साफ़ उजला पन्ना

    लिखने से डर गया मैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द सेतु (दस भारतीय कवि) (पृष्ठ 75)
    • संपादक : गिरधर राठी
    • रचनाकार : कवि के साथ मोहनजीत एवं वीरेन डंगवाल
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1994

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