दुनिया में जाड़ा आता है

duniya mein jaDa aata hai

संजय चतुर्वेदी

संजय चतुर्वेदी

दुनिया में जाड़ा आता है

संजय चतुर्वेदी

और अधिकसंजय चतुर्वेदी

    चिड़ियों से बातें होती हैं

    फिर पेड़ से बातें होती हैं

    इस लदर-पदर के गिरने में

    लमझेड़ से बातें होती हैं

    हत्या करते शाकाहारी उसपे वबाल भी ख़ूब हुआ

    ये मरे या मरे कोई भी चालू स्यापा मंसूब हुआ

    इंसाफ़ तराज़ू छोड़ गया घबरा के जिसकी चालों से

    वो घुटा हरामी दुनिया में हर मुद्दे का महबूब हुआ

    जो ग़ायब हैं उनके दारुण संसार की बातें करता हूँ

    मैं दर्ज यहाँ कुछ ऐसी भी बेकार की बातें करता हूँ

    धरनों में या बकवासों में ये मुद्दे कहीं नहीं होंगे

    इंसाँ की तानाशाही में ये नौहे कहीं नहीं होंगे

    हड्डियाँ चबाकर टी.वी. पर प्रतिरोध-पुरुष कहलाते हैं

    बेज़ुबाँ जानवर जिनकी थीं हड्डियाँ माल बन जाते हैं

    पुरुषार्थ गीदड़ों का जिनसे बेहतर वो चंट जियाला है

    सो जैजैवंती होती है जो इंक़लाब की ख़ाला है

    किसका विरोध किसके ऊपर क्या शान तुम्हारी बातों की

    है सहिष्णुता गंगाजमनी मुस्कान तुम्हारी बातों की

    ये कौन पार्टी करता है किसकी क़ीमत पर होती है

    किसकी उम्मत की ख़ूँरेज़ी किसकी उम्मत पर होती है

    क्यों विंध्यावासिनी मौन रहे क्योंकर कामाख्या सोती है

    इन कबूतरों की बोली में कर्ता की वाणी होती है

    बकरी के नन्हे बच्चों का वध त्रिपुरसुंदरी के घर पर

    हे महाकालि तू वर्जित कर अतिचार भैरवी के घर पर

    क्यों ख़ून-ख़ून तेरा आँगन क्यों बलिमंडन युगशाली है

    तू माता है तू जननी है तू पालन करने वाली है

    बलिपंथ धूप में खड़ी हुई जो नन्ही-नन्ही जानें हैं

    इनमें तेरा ही ज्योतिरूप ये तेरी ही संतानें हैं

    जब दयावान की वेदी पे करुणा बेहुरमत होती है

    क्यों हत्या निरपराध पशु की हस्सास इबादत होती है

    वो सत्य सदाशिव पशुपति हो मस्जूद-ए-मलाइक आदम हो

    इस बेहिसाब क़त्ल-ओ-ग़ारत का ज़रिया उम्मत होती है

    जल्लाद कर रहा है ख़िताब जैसे करीम की बोली हो

    अनिवार्य यातना जिस वध में सादिक़ रहीम की बोली हो

    फिर किससे बोलें क्या बोलें हम हतप्रभ से रह जाते हैं

    जन्नत का खोलो दरवाज़ा दहशत के बंदे आते हैं

    रहमान कहाँ सो गया ख़ुदा तेरी भी तो बदहाली है

    जो लिबरल सखियाँ डोल रहीं उनके होंठों पे लाली है

    सबके बच्चों को मार-मार अपने बच्चों को आज़ादी

    दुनिया का सारा सत्य चुरा अपने सच्चों को आज़ादी

    बलि देनी है मद की बलि दे ये हिंसा कैसी क़ुर्बानी

    नखदंतहीन विषरहित प्राणि की हत्या कैसी क़ुर्बानी

    यह ख़ून देखकर अगर तुझे थोड़ा-सा भी सुख होता है

    तू देख सके तो देख ख़ुदा भी धाड़ मारकर रोता है

    इनका शरीर भी दुखता है जो अपने लिए निवाला है

    इनको उतनी ही मुश्किल से इनकी माँओं ने पाला है

    इस बेज़ुबान पीड़ा का भी महशर में कोई नबी होगा

    सुनता है गर साहब सबकी इनकी आवाज़ रबी होगा

    एटमी जंग से पहले ही

    दुनिया में जाड़ा आता है

    उम्मत के पाँव फिसलते हैं

    ईमाँ में जाड़ा आता है

    हम थे असभ्य हम हैं असभ्य

    बाताँ में जाड़ा आता है

    ज़िद है असभ्य रह जाने की

    इंसाँ में जाड़ा आता है

    नाले बुलबुल के डूब गए

    बाग़ाँ में जाड़ा आता है

    जब बेक़ुसूर की खाल खींच

    ज़िंदाँ में जाड़ा आता है

    जब ऊन कहीं सुख देता है

    तब भेड़ से बातें होती हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : संजय चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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