चित्र

chitr

रवि प्रकाश

और अधिकरवि प्रकाश

    मेरे सामने दो रास्ते हैं

    मैं एक से निकलकर

    ब्रह्मचारी हो जाऊँगा

    और दूसरे से निकलकर

    एक अथाह गहरे अँधेरे गर्त और पतन का शिकार

    चेहरे मुरझाए हुए

    जैसे मैं जलती लालटेन के शीशों को

    अगले दिन साफ़ करता हूँ

    करता रहता हूँ, करता जाता हूँ

    करता ही जाता हूँ!

    और जब रात होती है

    रात ख़त्म ही नहीं होती

    और हत्यारे की जेब से सिगरेट छीननी पड़ती है

    रात और सिगरेट : भाड़े का हत्यारा

    कितना मुश्किल है एक साथ

    रात और सिगरेट की लड़ाई लड़ना

    जहाँ चवन्नियों के भाव देह बिकती है

    ऐसे ही रोटी मिलती है

    मस्तिष्क सुलगती देह के धुएँ से भरा रहता है

    रात और सिगरेट, भाड़े का हत्यारा!

    नींद

    जो परचून की दुकान पर

    बनिए के बही खातों में बंद रहती है

    आते-जाते मेरी आँखों को टोकती है

    जबकि ख़ुद को गिरवी रख

    नींद नहीं ली जा सकती

    मुझे सिक्कों के भयानक सपने आते हैं

    सपने को बेचकर नींद नहीं ख़रीदी जा सकती

    मेरी नींद!

    मैं बस में बैठता हूँ, नंगा होने को आतुर

    मनुष्य दुपट्टा ओढ़कर मुझसे बात करता है

    मन होता है एक तेज़ नस्तर लगा दूँ ऊपर से नीचे तक

    कहाँ जाऊँ? क्या करूँ?

    विज्ञापित चेहरों में अर्थ तलाशता

    पतनशील मैं अक्सर ही

    कोई और राग छेड़ देता हूँ

    फ़ाशिस्ट

    फ़ाशिस्ट

    और सिर्फ़ फ़ाशिस्ट!

    धरती पर पसरी पांडुलिपियों को पढ़ रहा हूँ

    साम्राज्यों के नायक बही खातों में व्यस्त हैं

    जिनकी हड्डियाँ तक चूस ली गईं

    वे उसकी हिफ़ाज़त में मस्त हैं

    हिसाब, मेरे पसीने का हिसाब

    मेरे पास इसके सिवाय कोई शब्द नहीं है, विन्यास नहीं है

    उपमाओं का लिबास नहीं है

    क्योंकि जो संचित है, वह रक्तरंजित है!

    शहर में एक लड़के के लिए

    चप्पलों का घिस जाना, आत्मा का घिस जाना है

    जबकि वह आईने के सामने

    खड़ा रहता है बालों को सँवारता

    वह नायक है।

    मुस्कुराहटें, जैसे खजुराहो का स्वप्न लिए

    ताजमहल की चौखट पर

    खीसें निपोर रही हैं

    अजन्मा

    अभी तक जन्मा ही नहीं।

    रोटी जल गई है और नींद के लिए

    कविता लिखनी है

    झूठ, झूठ और सिर्फ़ झूठ

    इसे सत्ता का विज्ञापन बना दो!

    स्मृतियों की ऊब में

    छटपटाते हुए घर हैं, जिसकी चौखट पर

    लटकती चमगादड़ें चीख़ रही हैं

    एक तानाशाह

    जिसकी नींद की गोलियाँ

    हमने खा ली हैं

    गीत, बस यही आख़िरी गीत!

    स्रोत :
    • रचनाकार : रवि प्रकाश
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए