प्रार्थना के लिए ज़रूरी शब्द

pararthna ke liye zaruri shabd

हरप्रसाद दास

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प्रार्थना के लिए ज़रूरी शब्द

हरप्रसाद दास

और अधिकहरप्रसाद दास

    (शुरूआत होगी एक गुहार से)

    हे प्रभु, हे विश्व नियन्ता, हे विधाता

    हे सर्वशक्तिमान्, हे अन्नदाता

    हे दयालु, हे सर्वज्ञाता हे त्राता

    हे करुणाकर, हे कृपानिधान

    हे लीलामय, हे गुणागार, हे विश्वाधार

    हे सुंदर, हे शून्य, हे जादूगर

    ईश्वर के नामकरण की कला में निपुण

    हमारी असहायता

    कम से कम इतना तो जानती है

    कि हम जो चाहते हैं, वह है ही

    उसके किसी किसी नाम में,

    जैसे ग़लती करने पर

    माफ़ कर देने को बंकिम हँसी

    भूख लगने पर मुट्ठी भर अन्न बढ़ा देने को

    हाथ पत्थर का, और इसीलिए है

    सकर्मक और अकर्मक दोनों विद्याओं में पारंगत

    हमारी असंख्य कविता

    उसके बाद तुम भलभलाकर बकते रहोगे अनर्गल

    कि कैसे उनका शरीर गढ़ा है

    ग्रहों, तारों, नीहारिकाओं से,

    कैसे अपनी क्षुद्रता के बावजूद

    तुम उन्हें पुकार सकते हो

    धूल के साथ धूल होकर खेलने के लिए,

    कैसे वे देख लेते हैं

    स्तुति के हाथी को

    मगर का निवाला बनते,

    और कैसे भूधर को उठाकर

    रख देते हैं यहाँ से वहाँ

    बहा देते हैं नदियाँ, झरने,

    रचते हैं झीलें और सागर

    याद रखना कि उनका गुन गाते समय

    भूल जाओ अपना अदने से अदना

    नाचीज़ वजूद

    इसके बाद बारी वर माँगने की,

    जहाँ याचना कम चतुराई ही ज़्यादा है

    जो भी देना है दो

    पर जो दे चुके, उसे लौटाओ मत

    देना ही है अगर दयानिधान, तो दो

    कोठियाँ ज़मीन-जायदाद ताक़त और अधिकार

    परिवार को भला-चंगा रखो

    नौकरी लगवा दो बड़े बेटे की

    औरत को दिलवा दो कर्णफूल

    मुक़द्दमे का फ़ैसला करा दो हक़ में

    गाँव की दो एकड़ ज़मीन में

    भाई को मिले हिस्सा

    गन्ने की क़ीमत बढ़े

    अमराई के आमों के बौर

    झुलसकर झर जाएँ

    चोरी हो माटी के गुल्लक से चींटी का संचय

    ब्याज पर लगा मूलधन कम से कम डूबे

    बहन के ब्याह के समय सस्ता रहे सोना

    भले कुमारग हो पर रास्ता दिखे अँधेरे में

    उसके बाद

    देने के लिए घूस, तुम्हें कहना होगा

    हे अमुक देवता, हे अमुक देवी

    नारियल चढ़ाऊँगा

    तर मलाईदार दूध से नहलाऊँगा

    पहनाऊँगा नई चटख कच्छी

    चाँदी का मुकुट

    नया बनवा दूँगा मंदिर का गुम्बद

    और संगमरमर की सीढ़ियाँ

    सौ रुपयों वाला गजरा पहनाऊँगा

    त्याग दूँगा माँस-मछली

    सोमवार को करूँगा उपवास

    झूठ नहीं बोलूँगा कभी

    और अख़ीर में कहना होगा

    अब

    सोने को चला है चित्रकार

    चला इम्तहान देने को

    चला कचहरी

    चला दूकान खोलने को

    चला बीज बोने

    चला लड़की के लिए वर खोजने

    चला नींव डालने नए मकान की

    चला दरख़ास्त देने

    चला

    चला

    चला

    सदा सहाय रहो हे चितेरों के चितेरे

    प्रार्थना में ज़रूरी शब्दों के इस संक्षिप्त अभिधान की रचना में मेरे सहायक

    रहे हैं जो लोग, जिन्होंने मुझे निर्लज्ज बने रहने की प्रेरणा दी है, जैसे यार-दोस्त,

    भाई-बंद, स्त्री, संतान, माँ-बाप, कुल पुरोहित, पड़ोसी, प्राचीन कवि, स्कूल

    मास्टर, पानी में तैरकर भी भीगने वाली बत्तख सबको मैं जानता हूँ, अपनी

    कृतज्ञता।

    मेरा अपना अनुभव भी इस मामले में कुछ कम नहीं, लेकिन मैं उसे

    खुल्लम-खुल्ला नहीं कहूँगा, और कहूँ भी तो लोग उसे पतियाएँगे नहीं।

    प्रार्थना के इन ज़रूरी शब्दों को इकट्ठा करने के दौरान, मैं जानता हूँ,

    मेरे अनजाने पता नहीं कब ढीली हो गई है, अभी तक मज़बूत और

    दुरुस्त रही आई, एक पुरानी पृथ्वी की धुरी।

    ट्रेन में अंधा भिखारी गीत गाना बंद कर चुका है, रास्तों पर अटक

    गई हैं असंख्य गाड़ियाँ, विग्रह के सामने सिर झुकाए मंदिर में फँसे रह गए

    हैं अनगिनत लोग, ज़ुबानें बंद हो गई हैं, मूँद गई है सब कुछ देखकर कुछ

    देखने वाली आँख।

    आरती के वक़्त, दीपमालिका ठहर गई है शून्य में, विश्वास जैसे सब

    का सब हो गया है निर्वाक्।

    देवता जड़ होकर बैठे हैं अपनी-अपनी जगह पर, मेरी तरह असंख्य

    कवि लगे हैं एक प्रार्थना रचने में, प्रार्थना के असंख्य संभाव्य शब्द पैदा हो

    चुके हैं, उनकी खोज जारी है पृथ्वी में, सो वे सब चले गए हैं अज्ञातवास में।

    जिन कुछेक शब्दों को मैं लिपिबद्ध किए जा रहा हूँ वे सचमुच कुछ

    कर सकते हैं इस पर ख़ुद मुझे विश्वास नहीं—

    लेकिन प्रार्थना के लिए शब्द मिलने के दुर्दिन में ये सकते हैं

    काम।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रार्थना के लिए ज़रूरी शब्द (पृष्ठ 101)
    • रचनाकार : हरप्रसाद दास
    • प्रकाशन : आलोकपर्व प्रकाशन
    • संस्करण : 2003

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