कवि का नसीब

kawi ka nasib

गोपालकृष्ण रथ

गोपालकृष्ण रथ

कवि का नसीब

गोपालकृष्ण रथ

और अधिकगोपालकृष्ण रथ

    इंद्रधनुष टूटना होता है

    कवि के नसीब में :

    काल को

    कामधेनु को सोखना होता है।

    आग उगलती ज़मीन

    बँटाई में मिली है कवि के खाते में

    रकबा : माप अमाप

    किसम : अनुर्वर

    ऋतुगर्भा विधूरित,

    सूखी नदी के पठार पर

    ढेर के ढेर सरकंडे।

    आमोद आनंद

    ना ही सुरभित अस्थिरता,

    उसे मालूम है

    जो तैरता रहता है

    ओस, भाप, लौटती लहरें

    और अस्तव्यस्त समय में।

    कवि के नसीब में

    हर रोज़ होता है राजा का अभिनय और

    फटी बनियान, फटे जाँघिया का अंतर्वास

    हर रोज़ ग़ज़ल, मुजरा, महफिल का दरबार,

    और छिन्न तंत्री, फटे गले,

    अतल अंतश का अंतर्दाह।

    कैसे जीता है वह

    आधे आकाश, आधे ज़मीन पर और

    आधे जीवन में

    वह जानता है

    जो गुँथ सकता है

    सूखे पत्ते,

    काँटे, आँसू, दुःस्वप्न और सूली

    और मुस्करा सकता है

    असफल हो लौटकर

    युवती के होंठों से,

    उम्र की नदी से

    नीले सागर से,

    तुलसी-पत्ते खोकर

    प्रभु जगन्नाथ की रत्नवेदी से।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विपुल दिगंत (पृष्ठ 110)
    • रचनाकार : गोपालकृष्ण रथ
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2019

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