नौ बत्ती टॉकीज़

nau batti taukiz

अजंता देव

अजंता देव

नौ बत्ती टॉकीज़

अजंता देव

और अधिकअजंता देव

     

    एक 

     

    बार-बार लौटती हूँ उन रास्तों पर 

    जो गुलज़ार रहती थीं नौ से बारह, बारह से तीन, तीन से छह, छह से नौ और फिर लास्ट शो तक 

    रिक्शे वाले भी अब नहीं रुकते इन भग्न भवनों के आगे 

    दीवारों पर पुराने पोस्टरों की गोंद पर जम गई है धूल 

    उनके पीछे छिप गई हैं वो मारक आँखें 

    और मैं अब भी ज़िंदा हूँ 

    जाने क्या ढूँढ़ती रहती हैं ये आँखें मुझमेंऽऽऽ राख के ढेर में शोला है ना चिंगारी है

     

    दो

     

    वो लैंप पोस्ट कहाँ है?

    कहाँ है रोशनी की वो शहतीर?

    सर्द रातों में बारिश का तिरछा गिरना कहाँ है?

    पृथ्वी के किस कोने में घटित हुआ था वह क्षण 

    मुझे पूरा नहीं बस एक पल चाहिए 

    जब ओवरकोट के खड़े कॉलर के बीच से उठता था लहराता धुआँ 

    जो भी हैऽऽऽ बस यही एक पल हैऽऽऽ

     

    तीन

     

    कुछ मत कहो 

    अभी दिन है 

    सपाट रोशनी में बयान ही रहेगी सारी बात 

    दिन ढलने दो 

    अँधेरा अपने आप मिटा देगा वाक्यों से अर्थ 

    रात अँधेरी है... बुझ गए दिए... आके मेरे पास... कानों में मेरे... 

    जो भी चाहे कहिएऽऽऽ जो भी चाहे कहिए

     

    चा

     

    अंत में याद रहेगी इच्छा 

    याद रहेगा ख़ालीपन 

    मोहब्बत नहीं 

    याद रहेंगे हो सकने वाले प्रेमी 

    देर तक याद रहेगी गलियों में गूँजती आवाज़ 

    तू कहाँऽऽऽ ये बता इस नशीली रात में 

    माने ना मेरा दिल दीवाना

     

    पाँच

     

    हम दो इकाई की तरह आस-पास बैठते थे 

    बीच में अँधेरे की तरह हमेशा होता था वो 

    और अँधेरे की तरह अदृश्य भी 

    परदे और मेरे साथ लगातार 

    अब भी ढूँढ़ती हूँ अँधेरा कोना 

    उसका होना, ना होना, फिर से होना 

    यों ही बीत जाते हैं दो घंटे 

    हर बार एक ही गाना बजता रहता है 

    यही वो जगह है... यही वो फ़िज़ाएँ 

    यहीं पर कभी आप हमसे मिले थे...

     

    छह

     

    यह कोई चतुर्थी या पूर्णिमा का नहीं 

    तुम्हारे साथ का तुम्हारे पास का चाँद था 

    जो रोज़ मेरे लिए आता था—अमावस में भी 

    ठीक उसके पास उगता था एक सितारा 

    मेरे लिए, मुझे नज़र आने के लिए 

    ये रात भीगी-भीगी... ये मस्त फ़िज़ाएँ

    उठाऽऽऽ धीरे-धीरे वो चाँद प्यारा प्याराऽऽऽ

     

    सात

     

    पूरी दीवार पर 

    देखती आँखें थीं

    ये होते हैं बड़े-बड़े नयन 

    मुझे तो लोग ऐसे ही कहते हैं मृगनयनी 

    क्या तुम मेरा छोटा-सा क़द देख पाओगे 

    इतनी बड़ी आँखों से?

    या मैं ही गुनगुनाती रहूँगी बेवजह 

    आँखों ही आँखों में इशारा हो गयाऽऽऽ 

    बैठे-बैठे जीने का सहारा हो गया

     

    आठ

     

    बंबई नहीं इंद्रलोक था 

    मैं जब उतरी दादर स्टेशन पर 

    मेरे आलता रँगे पैरों की अदृश्य छाप

    तुम्हारे घर के दरवाज़े तक चली आई थी 

    ये तुम्हारा शहर था 

    अब तो तुम मिलोगे यहाँ-वहाँ कहीं-कभी 

    अब ये मीना कुमारी का नहीं मेरा गाना था 

    यूँ ही कोई मिल गया थाऽऽऽ सरे राह चलते-चलते

     

    नौ

     

    तुम्हारे पीछे से झाँकता है नया चेहरा 

    सिगरेट के कश लगाता वो क़ातिल नज़रों वाला 

    तुम्हारे हाथ तुम्हारे नहीं 

    तुम्हारे होंठ तुम्हारे नहीं 

    मैं भी नहीं होती हूँ तुम्हारी 

    तुम ख़ुद अपना रक़ीब होते हो हर रात 

    फिर वही रात हैऽऽऽऽ फिर वहीऽऽऽ रात है ख़्वाबों की

    स्रोत :
    • रचनाकार : अजंता देव
    • प्रकाशन : सबद वेब पत्रिका

    संबंधित विषय

    यह पाठ नीचे दिए गये संग्रह में भी शामिल है

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए