रोहित वेमुला के लिए

rohit wemula ke liye

प्रियदर्शन

प्रियदर्शन

रोहित वेमुला के लिए

प्रियदर्शन

और अधिकप्रियदर्शन

     

    एक

    सत्ताईस साल से मौत की तिल-तिल अदा की जा रही क़िस्तें
    उसने एक बार चुकाने का फ़ैसला किया
    और एक लंबी छलाँग लगाकर चला गया उस बेहद लंबी अंधी सुरंग के पार
    जो उसकी ज़िंदगी थी।

    उसकी लहूलुहान पीठ पर सदियों से पड़ते कोड़ों के निशान थे
    उसकी ज़ुबान सिल दी गई थी
    अपने ज़ख़्मी होठों से जिन शब्दों को वह अपनी मुक्ति के मंत्र की तरह बुदबुदाना चाहता था,
    उन्हें व्यर्थ बना दिया गया था।

    उसे दंडित किया गया क्योंकि उसने ऊपर उठने की कोशिश की थी,
    वह रामायण का शंबूक था
    रोम का ग़ुलाम स्पार्टाकस
    वह उन लाखों-लाख गुमनाम ग़ुलामों, दासों और शूद्रों की साझा चीख़ था
    जो पीटे गए, मारे गए, सूली पर चढ़ा दिए गए
    जिनके कान में सीसा डाला गया, जिनकी आँख निकाल ली गई,
    जिनके शव सड़ने के लिए छोड़ दिए गए सड़कों पर। 

    वह हमारी आत्मा में चुभता हुआ भारत था
    जिसे ख़त्म किया जाना ज़रूरी था।

    इतिहास की ताक़तें चुपके से तैयार कर रही थीं उसका फंदा
    जब वह मारा गया तो बताया गया कि वह कायर था, उसने जान दे दी। 

    दो

    उसकी माँ थी,
    उसके भाई थे,
    उसके दोस्त थे,
    उसके सपने थे,
    उसका कार्ल सागान था,
    उसके भीतर छटपटाती कविताएँ थीं,
    उसके भीतर आकार लेती कुछ विज्ञान कथाएँ थीं,
    उसके भीतर उम्मीद थी,
    उसके भीतर ग़ुस्सा था,
    उसके भीतर प्रतिरोध की कामना थी,
    लेकिन अपने अंतिम समय में 
    वह बिल्कुल ख़ाली था
    वह कौन-सा ड्रैक्युला था 
    जिसने उसके भीतर उतर कर सोख लिया था 
    उसका पूरा संसार?

    तीन

    उसने अपनी ख़ुदकुशी के लिए सिर्फ़ ख़ुद को
    ज़िम्मेदार ठहराया, किसी और को नहीं।

    अब उसके हत्यारे उसका दिया प्रमाण-पत्र दिखाकर
    साबित कर रहे हैं कि उन्होंने उसे नहीं मारा।

    वह बस अपना जीवन जीना चाहता था,
    लेकिन इतने भर के लिए 
    उसे इतिहास की उन ताक़तों से टकराना पड़ा
    जो थकाकर मार डालने का हुनर जानती थीं।
    वे किसी कृपा की तरह वज़ीफ़े बाँटती थीं
    उनके पास बहुत सारा सब्र था, बहुत सारी करुणा
    जिससे वे अपने भीतर की घृणा को छुपाए रखती थीं
    उस दिन के इंतज़ार में
    जब कोई रोहित वेमुला हारकर छोड़ देगा अपनी और उनकी दुनिया
    वे नहीं चाहती थीं, कोई उन्हें आईना दिखाए
    कोई याद दिलाए उन्हें उनका ओछापन।

    चार

    हमें तो उसका शोक मनाने का हक़ भी नहीं 
    हम तो उसे ठीक से जानते तक नहीं
    हमने कभी देखा तक नहीं था कि किस हाल में वह जीता था,
    किस तरह मरता था, क्यों लड़ता था। 

    जब उसे इंतज़ार था हमारा, तब हम दूर खड़े रहे
    उसकी यातना से बेख़बर या बेपरवाह। 

    कोई नहीं जानता
    जिस बैनर से वह ताक़त हासिल करता था
    उसे मौत की रस्सी में बदलने से पहले
    उसने कितनी रस्सियाँ थामने की कोशिश की होगी
    उस सर्द एहसास तक पहुँचने से पहले, जिसमें कोई उदासी नहीं होती
    सिर्फ़ निचाट ख़ालीपन होता है, उसने कितनी बार शब्दों की आँच से
    ऊष्मा चाही होगी।

    जब यह छोटी-सी डोर भी छिनती लगी उसे
    तो उसने यह रस्सी बनाई 
    और चला गया सब कुछ छोड़कर।

    जान देकर ही असल में उसने हासिल की वह ज़िंदगी
    जिसका वह जीते-जी हक़दार था और जो हक़ हमसे अदा न हुआ।

    पाँच

    लेकिन एक दिन यह क़र्ज़ इतिहास को चुकाना होगा
    एक दिन एकलव्य लौटेगा अपना रिसता हुआ अँगूठा माँगने
    एक दिन रोम स्पार्टाकस का होगा
    एक दिन शंबूक वाल्मीकि के सामने खड़ा होगा
    पूछेगा आदिकवि से, 
    किस अपराध में एक महाकाव्य पर उसके ख़ून के छींटे डाले गए
    अपने ख़ून से जो स्याही तुमने बनाई है रोहित वेमुला
    एक दिन वह भी काम आएगी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रियदर्शन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए