हत्यारा प्रेम

hatyara prem

मंगलेश डबराल

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हत्यारा प्रेम

मंगलेश डबराल

और अधिकमंगलेश डबराल

    हत्यारा हत्या करके घर लौटा

    तो देखा कि घर में फूल वैसे ही खिले हुए हैं

    जैसे वह सुबह छोड़कर गया था

    उसकी पत्नी ने रोज़ की तरह दरवाज़ा खोलकर

    उसका स्वागत किया

    जवाब में वह इस बार कुछ ज़्यादा मुस्कुराया

    उसने कुछ देर अपने दोनों बच्चों से प्यार किया

    उन्हें आइसक्रीम खिलाने ले और ग़ुब्बारे दिलाने भी ले गया

    पता नहीं क्यों उसे एक पुराने फ़िल्मी गाने की पंक्तियाँ याद आईं

    जो एक ज़माने में उस बहुत प्रिय थीं :

    ‘कोई सागर दिल को बहलाता नहीं...’

    रात में वह अपनी पत्नी को इतनी देर चूमता रहा

    कि वह सहसा घबरा गई

    फिर इतनी देर तक उससे सहवास करता रहा

    कि आतंकित हो उठी

    अंत में अपने को स्खलित करते हुए उसने कहा

    ‘वीर भोग्या वसुंधरा’

    मैं बहुत ख़ुश हूँ आज तुमने मेरा बहुत साथ दिया

    वरना मैं तुम्हें ज़िंदा छोड़ने वाला नहीं था।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मंगलेश डबराल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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