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प्रेमधरा

premadhra

धीरेन्द्र प्रेमर्षि

और अधिकधीरेन्द्र प्रेमर्षि

    अपन कहल यैह माटि अइ, जायब कतऽ छोड़िकऽ

    पुरखा सभसँ भेटल अइ जे, स्नेह-ज्ञानमे बोड़िकऽ

    अही माटिमे लड़ैत-पड़ैत हम सिखलौँ देबऽ गुड़कुनियाँ

    एकरे ममता-गुण-गौरवसँ लगए सुहाओन सगर दुनियाँ

    नस-नसमे दौगैत परिचयसँ रहब कोना मुह मोड़िकऽ

    अपन कहल यैह माटि अइ, जायब कतऽ छोड़िकऽ

    अपने हाथेँ सिरजैत पूजी हम कर्मक भगवानकेँ

    संसारहिकेँ हीत बुझी हम छोड़िकऽ बस बइमानकेँ

    तन-मन-जीवन उर्वर बनबी सभटा परती तोड़िकऽ

    अपन कहल यैह माटि अइ, जायब कतऽ छोड़िकऽ

    अपनाबीचक औल-झौलकेँ अपनेसँ फरिएबै हम

    स्नेहक सिञ्चनसँ धरती युगयुगतक हरिएबै हम

    खगन भेलापर देबै देहसँ सभटा खून निचोड़िकऽ

    अपन कहल यैह माटि अइ, जाएब कतऽ छोड़िकऽ

    स्रोत :
    • पुस्तक : ई-मिथिला
    • संपादक : बालमुकुन्द
    • रचनाकार : धीरेन्द्र प्रेमर्षि
    • संस्करण : 2025

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