अपन कहल यैह माटि अइ, जायब कतऽ ई छोड़िकऽ
पुरखा सभसँ भेटल अइ जे, स्नेह-ज्ञानमे बोड़िकऽ
अही माटिमे लड़ैत-पड़ैत हम सिखलौँ देबऽ गुड़कुनियाँ
एकरे ममता-गुण-गौरवसँ लगए सुहाओन सगर दुनियाँ
नस-नसमे दौगैत परिचयसँ रहब कोना मुह मोड़िकऽ
अपन कहल यैह माटि अइ, जायब कतऽ ई छोड़िकऽ
अपने हाथेँ सिरजैत पूजी हम कर्मक भगवानकेँ
संसारहिकेँ हीत बुझी हम छोड़िकऽ बस बइमानकेँ
तन-मन-जीवन उर्वर बनबी सभटा परती तोड़िकऽ
अपन कहल यैह माटि अइ, जायब कतऽ ई छोड़िकऽ
अपनाबीचक औल-झौलकेँ अपनेसँ फरिएबै हम
स्नेहक सिञ्चनसँ ई धरती युगयुगतक हरिएबै हम
खगन भेलापर देबै देहसँ सभटा खून निचोड़िकऽ
अपन कहल यैह माटि अइ, जाएब कतऽ ई छोड़िकऽ
- पुस्तक : ई-मिथिला
- संपादक : बालमुकुन्द
- रचनाकार : धीरेन्द्र प्रेमर्षि
- संस्करण : 2025
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