जा पाते तो

ja pate to

बोधिसत्व

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    पत्तियाँ सब छोड़कर चली गईं

    जा पाते तो पेड़ भी जाते

    उनके साथ

    उनकी अँगुली पकड़े।

    वे वहीं रुके रहे कि

    अगर बिछुड़ी हुई अनेक पत्तियों में से कोई लौट आई

    अपनी टहनियों और डालों को खोजती तो

    उसका क्या होगा?

    अगर खो गई परछाइयाँ लौट आईं तो

    उनको खड़े होने के लिए छाया कौन देगा

    यह सोचकर वर्षों वहीं खड़े रहे निपात पेड़!

    कई बार तो वे पेड़ भूल गए कि

    वे एक चौराहे पर खड़े हैं

    वे यह भी भूल गए कि लोगों को

    उनका वहाँ खड़ा रहना सहन नहीं हो रहा

    लेकिन छाल छिल जाने पर भी

    ढीठ खड़े रहे

    डाल कट जाने पर भी

    काठ होकर भी

    खड़े रहे।

    वे खड़े रहे कि

    अगर अपनी तरंगों को खोजती

    वापस आती है हवा

    तो वह किसे हिलाकर अपना आना बताएगी

    वह किस कोटर में अपना डेरा जमाएगी?

    पेड़ तब जाते हैं कहीं

    जब उनसे पृथ्वी की उदासी

    बादलों की बेरुख़ी

    और तारों का शोक सहन नहीं होता।

    एक चूहा रहता है जर्जर जड़ों में

    वह निराश्रित हो जाएगा

    पेड़ के चले जाने पर

    यह सोचकर युगों तक

    खड़े रहे पेड़ एक जगह।

    चूहे के पहले जड़ में रहता था एक नाग

    उसके पहले एक नेवले का पता थे पेड़

    उस नाग और चूहे के साथ

    एक बगुले का स्थायी पता थी उनकी जड़।

    पेड़ इसलिए भी खड़े रहे कि

    उनके कहीं और चले जाने से

    चीटियाँ भूल जाएँगी घर की राह

    वे अचल खड़े रहे

    मार खाते काटे-छाँटे जाते।

    कई बार वे जाना चाहते थे चुपचाप

    लेकिन उस समुद्र की सोच कर रुक जाते रहे

    जो उनसे कुछ ही दूरी पर पड़ा है युगों से

    कराहता-विलपता!

    उन्होंने तय किया जब खारे समुद्र को मिल जाएगा

    दूसरा घर

    दूसरी पृथ्वी

    दूसरा तट

    तब जाएँगे वे कहीं और।

    पेड़ों के खड़े रह जाने की अनेक बुनियादी बातें हैं

    जो या तो पेड़ों को पता हैं या पानी की उन बूँदों को

    जिनसे पिछली बरखा में पेड़ों ने वादा किया था कि

    'हम उस दिन सूख जाएँ

    जिस दिन जल और बूँदों को भूल जाएँ...'

    पेड़ तब जाते हैं कहीं

    जब पखेरू उन पर बसेरा करना छोड़ देते हैं

    सूर्य उनकी पीठ सेंकने से इनकार कर देता है

    क्षीण हो गया चंद्रमा

    अपनी अमावस्या की गुफा में जाने के पहले

    'हे विटप लौट आऊँगा' कह कर नहीं जाता

    जब लकड़हारों को उन पर

    कुल्हाड़ी चलाने का कोई पछतावा नहीं होता

    तब जाते हैं कहीं और

    उदास अकेले पैदल-पैदल पेड़!

    नहीं तो तुम ही बताओ

    तुमने किसी पेड़ को स्वयं से

    कहीं जाते देखा है?

    स्रोत :
    • रचनाकार : बोधिसत्व
    • प्रकाशन : कल्चर बुकलेट

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