यात्रा की तैयारी

yatra ki taiyari

प्रीति चौधरी

प्रीति चौधरी

यात्रा की तैयारी

प्रीति चौधरी

और अधिकप्रीति चौधरी

    वह यात्रा की तैयारी में हैं

    दूसरी दुनिया की

    भरपूर देख आस-पास

    बोल बतिया

    विदा कहने की मुद्रा में

    बैकुंठ और वैतरणी से परे

    फ़िक्र नहीं अब कोई

    किसी की याद आस नहीं

    कोई शब्द नहीं

    राहत है अख़बार से दूर है माँ

    कितनी दुखी हो जातीं

    मासूम बच्ची के साथ घटी

    हैवानियत की ख़बर से

    हर बार की तरह

    पूछतीं ईश्वरों और दिग् दिगंतों से

    इतनी नफ़रत, इतनी हिंसा

    इंसान के अंदर आख़िर

    आती कहाँ से है

    पहली बार अच्छा लग रहा

    माँ का से दूर हो जाना अख़बारों से

    क्या पता

    भयानक ख़बरों वाले इस समय में

    माँ सोचती हों किसी ऐसी दुनिया के बारे में

    जहाँ देवता बसे बसे

    सचमुच के मनुष्य बसते हों

    हो सकता है माँ

    अपनी सारी झुर्रियाँ बिस्तर पर छोड़

    निस्तेज पड़ी देह से निकल

    ताजी हवा के बग़ीचे में बैठी हों

    या फिर

    नदी में तैरती हों मछलियों के साथ

    गुंजाइश यह भी है कि

    माँ ने किसी ऐसी दुनिया में साँस ली हो

    जहाँ हवा इतनी साफ़ हो कि

    माँ को मिला हो आराम और वे सो गई हों

    हर सुबह धरती को प्रणाम कर

    दिन शुरू करने वाली मेरी माँ

    तुम्हें तो पता ही है

    धरती पर हम मनुष्यों के पाप सच में

    असह्य हो चुके हैं

    तुम्हारी पौराणिक कथाओं में

    पृथ्वी कई बार भागती है बेतहाशा

    बचपन में रो पड़ती थी मैं

    पृथ्वी की कातरता पर

    माँ तुम जानती हो

    फिर भी दोहरा दूँ

    पृथ्वी सच में संकट में है

    पुकारती भी है, चीत्कारती भी

    हमने पृथ्वी से छीन ली है उसकी हवा

    छीन लिया है उसका पानी

    अपनी अतृप्त अभिलाषाओं से

    हमने भर दिए हैं ख़तरनाक रसायन

    पृथ्वी की शिराओं में

    उसकी धमनियों को पाट दिया है प्लास्टिक से

    माँ शायद ये ऐसे लोगों की पीढ़ी थी

    जो पृथ्वी को प्रणाम नहीं करते

    भूमि-पूजन करते लोगों की प्रजाति

    नारियल अक्षत के दम पर

    धरती की कोख में जेसीबी चलवा

    उससे उसकी नदियाँ, तालाब छीनती रही

    अनसुनी करती रही धरती की कराह

    माँ तुम महाप्रस्थान की तैयारी में हो

    और मैं किंकर्तव्यविमूढ़

    तुम्हारी जगह मुझे धरती को प्रणाम करना होगा

    इसमें क्षमा-याचना होगी

    दोनों ही माँओं से

    तुम दोनों का ऑक्सीजन

    हमने चुरा लिया।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रीति चौधरी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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