राधा कहाँ है-1

radha kahan hai 1

सुगतकुमारी

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राधा कहाँ है-1

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    सांध्यदीप जला कहीं

    गोकुल में छाई है निस्तब्धता

    दौड़ते-भागते नहीं बछड़ों के साथ-

    बाँसुरी लिए हुए बालवृंद

    आत्मविस्मृत हो रास्ते के किनारे

    आकर खड़ी नहीं होती गोपिकाएँ

    देखो, हुई गोधूलि वेला!

    घंटियों की ध्वनि लिए धूल उड़ाती

    भरे-थनों गाएँ आईं धीरे-धीरे

    समय गया है रैन बसेरे का

    उनके मध्य शोभायमान पूर्णेन्दु

    उदित-सा नीलरंगों से दीप्त

    धूलि-धूसरित शिथिल, मलिन वसन में

    किलकते स्वेदित कनकमय शरीर

    धुँधराले बाल फहराए मुस्कुराता

    आता नहीं कुलाँचे भरता बालक एक।

    गाती नहीं चिड़ियाँ, सुगंध-लिप्त

    पवन भी नहीं खेलता

    नन्हें बछड़ों को चाटती नहीं निश्चल

    खड़ी हैं अश्रु बहाती गाएँ।

    कहाँ गई माताएँ, सखियाँ? किसी को भी

    कुछ नहीं देता दिखाई, कोई आवाज़ नहीं

    निश्चल है ब्रज, निश्चल है गोकुल

    निश्चल वृंदावन का अन्तरंग

    आज इस काले प्रभात में तो

    छोड़के चला गया कान्हा अपना वृंदावन!

    राधा कहाँ है? ओ! देही तिरस्कृत

    देह भी कहाँ थकित हो गिर गई?

    कहाँ है राधा? खोजो मन्दानिल,

    व्यथित होने वाले मन

    लहर विहीन उन्मथित गद्गदित

    कालिन्दी तट पर कहीं नहीं

    बेलाशून्य सब झरे झुके

    निकुंज की गोद में है नहीं

    नृत्य-विस्मृत गद्गदित पत्ते घिरे

    वटवृक्ष के तले भी नहीं है क्या!

    स्वयं रो-रोकर थकी झपकी लगी

    माता यशोदा के निकट है नहीं

    कान्हा की नटखट लीला कहते

    आँसू पोंछकर हँसने वाले

    कान्हा का बखान कर उन्निद्र

    नारियों के बीच में है नहीं

    राधा है कहाँ? आपादमस्तक

    कुसुमाभरण-सज्जिता

    भाल पर चंद्र-बिन्दी औ’

    जूड़े में मयूर-पंख लगाए

    रात्रि-सा नीलांबर धारे

    सखा के श्याम शरीर लगके

    चंद्रबिंबोदित सा दिखता

    वृंदावन-वधू है कहाँ?...

    घनान्धकार में चलती हूँ मैं, राधिका

    कहाँ गई, जानना ही है।

    बिना गोविन्द के राधिका

    कैसे जिएगी, जानना ही है

    कहता है कोई रास्ता दिखा के “राधिका

    रहती है वहाँ, जानते नहीं?”

    दुलार के राधा-पालित शुक

    रोती है व्यथित हो

    बैठे अंचल लहराने वाले स्कंध पर

    हिलकर तुतलाहट से

    “कान्ह, कान्ह” पुकारती, बाँसुरी-सी

    सीटी बजाने वाली

    उड़ती-फिरती है, राधारानी की खोज में

    “ओ राधारानी, कहाँ है तू?” ढूँढ़ते

    हैं घने अंधकार में दीपक

    रोते-कलपते खोजते हैं गोप-गोपिकाएँ

    कहाँ गई गोकुल की वधू?

    राधा कैसे जीती है बिना

    देखे माधव का मुखारविन्द!

    राधा है कहाँ? खोजो रे मन्दानिल!

    व्यथित होने वाले मन!

    स्रोत :
    • पुस्तक : राधा कहाँ है (पृष्ठ 35)
    • रचनाकार : सुगतकुमारी
    • प्रकाशन : केरल हिंदी साहित्य मंडल प्रकाशन
    • संस्करण : 1996

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