आतम-गियान

aatam giyan

अरुणाभ सौरभ

अरुणाभ सौरभ

आतम-गियान

अरुणाभ सौरभ

और अधिकअरुणाभ सौरभ

     

    एक

    महान वेधशालाओं में
    किए गए परीक्षण
    विचारों के सबसे बड़े स्कूल से प्राप्त ज्ञान के आधार पर
    सभ्यता में दुमुँही चाल चलता चालाक आदमी
    जिसकी चमकती शातिर आँखें
    बेहद मीठी ज़ुबान और मुस्कुराता हर बात पर
    वह दुनिया का सबसे अमीर
    सबसे बड़ा नेता, अधिकारी हो सकता है
    वह दुनिया का सबसे चालाक आदमी हो सकता है
    पर वह सिर्फ़ आदमी
    और कवि नहीं हो सकता।

    दो

    किसी साज़िश के तहत 
    सिल जाए ज़ुबान 
    किसी अपराध के नाम पर
    कोई और क़ैद हो जाए झूठ-मूठ में
    तो परिवार के लोगो, 
    मित्रो, 
    साथियो, 
    दुश्मनो,
    किसी भी बात पर रोना मत 
    यह समय रोती आँखों में लाल मिर्च रगड़ने का है 
    और हत्यारे हाथों से कविता लिखने का यह समय
    बदलती दुनिया का भाष्य है 
    सूरज के गालों में फेसियल करने 
    ब्लीच करने चंद्रमा को पहुँच चुकी हैं क्रीम कंपनियाँ 
    क़ैदख़ाने की समूची रात अपने भीतर समेटे बैठी है जनता
    दिन में 
    दुपहरी में 
    अपने घोंसले में माचिस के डिब्बे जैसे घर में 
    इधर योजना और नीति पर चल रही है बहस 
    असली इंडिया या असली मसाला 
    उधर माँग कि लोच समझ नहीं पाई 
    अपनी प्यारी आर.बी.आई।

    तीन 

    अपने ख़ून को पानी समझ
    किसी माँद में दुबक कर खुजलाते रहो काँख
    भेड़िए, साँप या भूखे शेर के मानिंद 
    किसी जलाशय में नदी में 
    उतरकर अनंत काल तक जल समाधि में 
    लीन होकर त्याग दो प्राण 

    हत्या के बाद ज़मीन पर गिरे ख़ून, माँस और लोथड़े 
    कटे फल के टुकड़े-सा महसूस करना है 
    जिन्हे देखकर आंतरिक तपोबल जागृत होगा 

    हम अपने कुनबे, दड़बे में छिपे लोग जिनकी कोई माँग नहीं 
    एक अमरफल लाने निकले हैं 
    अगम के पार 
    निगम के पार 
    सत के पार 
    असत के पार 
    लोकतंत्र को बैताल की तरह अपने कंधों पर लादकर 
    कथा सुन रहे हैं राजा विक्रम की तरह 

    भयानक चीख़ का नाम है हमारा समय 
    अनगिन सवालों से टकराने से पहले 
    अपने बच्चे को जी भर चूम लिया जाए!

    स्रोत :
    • रचनाकार : अरुणाभ सौरभ
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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