रोशनी की तलवार

roshni ki talwar

मनजीत टिवाणा

मनजीत टिवाणा

रोशनी की तलवार

मनजीत टिवाणा

और अधिकमनजीत टिवाणा

    जिनके घर बचपन में छिन जाते

    उनसे घर दूर चले जाते हैं

    जाने वह किस-किसका

    जिस्म पहनकर आता है

    और हर बार

    मेरा घर छीनकर

    चौराहे पर खड़ा कहता है

    “देख, कितनी आवारागर्द है

    कभी घर ही नहीं घुसती”

    चौराहे पर खड़ी मैं

    हर आम और ख़ास से

    अपने घर का पता पूछती हूँ

    कोई एक, भीड़ में से निकलकर

    कहता है

    मेरे दिमाग़ में कई कमरे हैं

    एक कमरे का

    दूसरे कमरे में दरवाज़ा नहीं खुलता

    तुम एक कमरे में रह सकती हो

    मैंने उसकी चोर नज़र की

    ओर घूरकर देखा

    इतने में कोई दूसरा

    आगे आकर कहता

    क्या किसी के साथ गुज़रे

    कुछ ख़ूबसूरत पल

    पर्याप्त नहीं होते

    बाक़ी बची उम्र के वास्ते

    मैंने उसे कनखियों से घूरकर देखा

    अब तक कोई तीसरा

    आगे बढ़कर कहता है

    कि घर तो झूठे रिश्तों पर

    सुनहरी लेबल है

    तुम अपने माथे की रोशनी से

    उस झूठे लेबल को कैसे करोगी रोशन

    मैं सोचने लगती हूँ

    इतने में कोई एक चौथा उठकर

    कहता है

    कि हर आदमी चोरी-छिपे ही सही

    अपने घर से दूर भागता रहता है

    फिर तुम उस सूने घर का क्या करोगी

    मैं घबरा जाती हूँ

    अब तक पाँचवाँ कोई

    उठता और कहता है

    पक्षी, पवन और पवित्र सोच को

    घर की सीमाओं की ज़रूरत नहीं होती

    इतने में सेफ़ो, सिल्विया, एमिली

    राबिया, सारा शगुफ़्ता और अमृता प्रीतम की

    कशीद हुई-सी आवाज़ें,

    मुझे सुनाई देती हैं

    कि तुम घर की दीवारों की बात करती हो

    तुम्हारे जैसी आत्माओं के लिए तो

    समय की सरहदें भी

    तंग पड़ जाती हैं।

    और तुम्हारी रोशनी की

    तलवार

    जो सच माँगती है

    उसका हमला भला कोई

    कैसे झेल सकता है

    इसलिए तुम घर का पीछा छोड़ो

    जिनके घर

    बचपन में छिन जाते हैं

    घर उनसे दूर

    चले जाते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 545)
    • रचनाकार : कवयित्री के साथ अनुवादक फूलचंद मानव और योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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