जेरुसलेम

jeruslem

निधीश त्यागी

निधीश त्यागी

जेरुसलेम

निधीश त्यागी

और अधिकनिधीश त्यागी

     

    बाबर समरक़ंद के रास्ते पर है, 
    समरक़ंद बाबर के रास्ते पर 

    — श्रीकांत वर्मा

     

    पीछे रह गया है जेरुसलेम
    नहीं आगे, अभी और आगे है जेरुसलेम
    सिर्फ़ वहीं नहीं है जेरुसलेम
    जहाँ तुम हो अभी
    राह भी रहा जेरुसलेम, रोड़ा भी
    रास्ता काटता रहा जेरुसलेम
    जेरुसलेम का

    जितनी बार तुम जेरुसलेम जाते
    जेरुसलेम थोड़ा खिसक जाता
    अपने नक़्शे से उतनी बार
    बहुत सारा जेरुसलेम बाहर रहा जेरुसलेम के
    बहुत सारा जेरुसलेम ग़ायब भी जेरुसलेम में
    जितनी इबादत जाती है जेरुसलेम के रास्ते
    जितना सारा लहू बहता है जेरुसलेम के वास्ते

    दीवारों पर लिखा है जेरुसलेम
    तलवारों पर लिखा है जेरुसलेम
    जनाज़ों पर दर्ज है जेरुसलेम
    सूलियों पर लिखा है जेरुसलेम
    शहादतों में लिखा है जेरुसलेम
    शिकस्तों में लिखा है जेरुसलेम
    शिकायतों में लिखा है जेरुसलेम
    दिलासों में लिखा है जेरुसलेम

    अपनी तबाहियों में आबाद है जेरुसलेम
    अपनी आबादियों में तबाह है जेरुसलेम
    अपनी ग़ुलामियों में आज़ादी ढूँढ़ता जेरुसलेम
    दीवारों का जेरुसलेम दरकता है इबादतों में
    इबादतों का जेरुसलेम सँभलता है दीवारों में
    टूटता रहता है जेरुसलेम, बिखरता नहीं जेरुसलेम
    बहुत से नाम लिखे गए जेरुसलेम पर
    बहुत से नाम मिटाए गए जेरुसलेम में

    पत्थरों के तले पर्चियाँ
    और दीवारों पर बैठे परिंदे
    उड़ते रहे रेतीली हवाओं में
    चढ़ता चला गया जेरुसलेम जितना सूलियों पर सीढ़ियाँ दर सीढ़ियाँ
    उतने ही जंग खाते तालों में बंद है जेरुसलेम
    और गुमी चाबियों की बदमाशियाँ कहीं और हैं
    कितनी इंसानियत के आड़े आता रहा जेरुसलेम
    कितनी हैवानियत की गवाही बनता जेरुसलेम
    काग़ज़ों में, क़ब्ज़ों में, कहानियों में,
    लड़ाइयों में बँटता रहा जेरुसलेम
    न पूरा हो सका, न साबुत रह सका जेरुसलेम

    तुम ज़रूर जाते रहे
    जेरुसलेम की दीवारों पर हथेलियाँ रखने
    पत्थरों पर अपने आँसू रखने
    अपने पछतावों के साथ
    अपनी मन्नतों के साथ
    मुक्ति के लिए
    जिये का जेरुसलेम पत्थरों में
    मरे का जेरुसलेम इंसानों में
    पर वे लोग
    जो अपना जेरुसलेम साथ लिए चलते हैं
    जो तलाश नहीं रहे अपना जेरुसलेम
    अपने से, अपनों से बाहर
    बकरियों को हाँकते हुए वे
    गड़रिए निकल चुके हैं कब के
    बहुत दूर उस जगह से
    जिसका नाम बाद में
    पड़ गया जेरुसलेम
    दोस्तों
    गड़रियों के बिना कहाँ रहा
    जेरुसलेम
    जेरुसलेम।

    स्रोत :
    • रचनाकार : निधीश त्यागी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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