दहकता वृक्ष

dahakta wriksh

मलय

मलय

दहकता वृक्ष

मलय

और अधिकमलय

    नामुमकिन हैं

    एक दहकते वृक्ष के पास बैठकर

    उसे छू पाने की हवा से

    बचकर अछूता रह पाना

    अपनी ज़मीन को मिलाकर

    उसकी आग से झरझराते हुए

    उसे पाते जाने की

    प्रतीति का रंग कैसा होता है?

    उसके उठते आलाप में तैरकर

    अंदर

    अपनी ही जला पाई

    आग के लहर-शिखरों से

    छानते छूते जाना ऊँचाइयाँ

    उतरतीं

    अपनी और उसकी गहराइयाँ

    ये जड़ों की जवानी के कर्मातुर

    शिखर-दर-शिखर

    शरीर की खुली मुद्रा से उतरी

    गाढ़ी स्याही से

    सोखते-सीखते

    लिखते जाना

    उम्र का जलता-बुझता

    फिर-फिर जलता उत्ताप

    प्रवाहित-सा कर गुज़रने का,

    फिर गूँजती ध्वनियों की

    भाषाकुल अथाह गहराइयों में

    दोपहर के सूर्य की तरह

    ज़िंदगियों में रहते-बहते हुए

    साझा होते हुए

    समय को घेरकर खुलना साथ-साथ

    गति में रचते हुए

    अाग से प्रतिफलित आग

    एक-एक लपक से

    लाँघते जाना

    ज़िंदगी के भरे हुए समुद्र-दर-समुद्र

    डूबते-उतराते उबरते से

    भीगे हुए से पर गीले नहीं

    झुलसने से हरे होने की

    अपार गाथा

    इस वृक्ष के किंचित् हिलते पत्तों से

    टपकती है

    ओंठ नदी के दो किनारों की तरह

    जलते हुए चुंबनों की लौ को

    दहकती दहार में सकेले हैं

    सारा प्रवाहित स्वाद

    उड़ेलते ध्वनि पंखों का

    आसार-प्रसार

    उस गरजती गर्जना का प्रवाह

    कितना अटल गहरा

    और साथ ही

    तितली की तरह रंगीन कोमल विचित्र

    पारदर्शिता की तरह अमूर्त-मूर्त

    इच्छा की तरह तिरछा रंगीन

    और रूपायित होने की

    तेजस्वित गरिमा से दिपता है

    वृक्ष की शाखाएँ

    हवा के हौसलों पर क़ब्ज़ा कर

    झूलती जाती हैं

    और बेचैनी

    उगती सूझ के बावजूद

    उत्तेजित साँस की ठंडी लकीर नहीं है

    आग का अागामी उत्ताप भी बढ़ेगा

    बढ़ता जाएगा

    आगे

    पता क्या

    बढ़ता ही जाता है

    छूने भर नहीं

    पा लेने को सबको!

    स्रोत :
    • रचनाकार : मलय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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