पशु मेले में

pashu mele mein

विनोद पदरज

विनोद पदरज

पशु मेले में

विनोद पदरज

और अधिकविनोद पदरज

    वह राता और नीला

    जिन्हें खींच रहा है नया मालिक

    पाँव रोप रहे हैं

    जेवड़ा छुड़ा रहे हैं

    मार खा रहे हैं मगर

    नट रहे हैं आन गाँव घर जाने से

    वहाँ भी वही कड़ियल धरती होगी

    वही हल का फाल

    कंधों पर जुआ होगा ही

    आर लगी पराणी भी

    भूखों तो नहीं ही मरने देगा वह

    हरा सही

    तूड़ा तो मिलेगा

    पर उनकी आँखें नम हैं

    और उस किसान की भी

    जिसने इन्हें बेचा

    वह उनकी पीठ पर हाथ फेरता है

    पुचकारता है

    टिचकारी देकर हाँकता है

    छोड़ आता है कुछ दूर तक, कहता हुआ—

    ‘‘मारे मत रे इन्हें क़साई

    प्यार से ले जा’’

    जिस दिन चला था वह घर से

    उस दिन चूल्हा नहीं जला था

    दहाड़े मारकर रोई थी बेटी

    जिसका आर्त्त-स्वर

    गाँव के काँकड़ तक सुनाई पड़ता था

    लौटने पर उसका सामना

    कैसे करेगा वह

    छोड़िए भी

    इसे वे क्या समझेंगे

    जिनके लिए

    आदमी का अर्थ जानवर

    और जानवर का अर्थ

    फ़क़त दूध और चर्बी और जूता है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : विनोद पदरज
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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