पृथ्वी-गाथा

prithwi gatha

राहुल राजेश

राहुल राजेश

पृथ्वी-गाथा

राहुल राजेश

और अधिकराहुल राजेश

    पेड़ों से झरते पत्ते

    धरती के टूटे हुए केश हैं

    सर-सर बहती हवाएँ

    ईश्वर की साँसें

    पहाड़ों के पेट में उठती मरोड़ें

    सभ्यताओं की बदहज़मियाँ

    मेरे माथे पर उग आईं लकीरें

    मेरी उम्र नहीं,

    मेरी आत्मा की सलवटें हैं

    मेरे पाँवों की थकान

    छूट गए गाँव की पुकार है

    मेरे बदन का साँवलापन

    माटी की सोंधी गंध

    खिड़की से टुकुर-टुकुर झाँकता चाँद

    ईश्वर का गुप्तचर है

    बादलों से आसमान में उग आईं आकृतियाँ

    समुद्र की बालसुलभ चित्रकारियाँ

    दीवार पर बेशरमी से उग आया पीपल

    प्रकृति की आवारगी

    झमाझम बारिश के बाद

    उग आया इंद्रधनुष

    प्रकृति की निश्छल मुस्कान

    सुबह पेट का साफ़ होना

    विचारों की क़ब्ज़ियत है

    चप्पल से चिपक गई चिंदी

    मुर्दा विचारधारा

    क़ब्रिस्तान में रोज़ खिल आते फूल

    मृत्यु की पराजय के प्रमाण

    रोज़ धू-धू कर जलती चिताएँ

    नश्वरता का दर्शन नहीं,

    जीवन की अनश्वरता का अनवरत आख्यान हैं

    बीहड़ वन में कुलाँचे मारती हिरणें

    प्रकृति का स्त्रीत्व है

    भाषा में गईं वक्रताएँ

    संस्कृतियों का संताप

    बार-बार लौट-लौट आती बाढ़

    अकाल और सुखाड़

    पृथ्वी का विलाप

    गंतव्य-गझिन रेलगाड़ी की लौहवर्णी खिड़की से

    अपलक अनंत को ताकती स्त्री का मौन

    संपूर्ण स्त्री जाति का कोलाहल है

    रेल की पटरियों के समानांतर खड़े

    चाँदी की त्वचा वाले, कर्षण-भार से तने

    लौह-स्तंभों की गतिमान जड़ता

    पुरुषों का सामूहिक अहंकार

    अभी-अभी बस से उतरी वह लड़की

    अपनी लटें लहराती बिंदास

    प्रेम का बस-स्टॉप है

    उस बूढ़ी औरत के गालों पर सजी झुर्रियाँ

    उसकी उम्र की सुंदरता है

    घर लौटते पक्षियों और आदमियों में

    कोई अंतर नहीं

    दोनों ही प्रेम के हरकारे हैं

    पार्कों में, घरों में, स्कूलों में

    धमाचौकड़ी करते बच्चे

    मनुष्यता के नाम लिखे

    सारे मज़हबों के प्रेम-पत्र।

    स्रोत :
    • रचनाकार : राहुल राजेश
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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