नवरात्रि पर देवियाँ

nawratri par dewiyan

सपना भट्ट

सपना भट्ट

नवरात्रि पर देवियाँ

सपना भट्ट

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    नवरात्र की नवमी पर

    भीतर देवथान में गुंजारित हैं

    मुख्य पुजारी के दैविक मंत्रोच्चार के साथ

    बड़े बूढ़ों के विह्वल स्वर भी।

    ‘ॐ जयंती मंगला काली

    भद्रकाली कपालिनी’!

    रसोईघर से रही है

    हलवे की भीनी-भीनी महक

    छानी जा रही हैं गर्मागर्म पूड़ियाँ

    नौ बच्चियाँ बैठ चुकीं आसनों पर

    और बड़े ससुरजी का नाती

    भैरव वाली गद्दी पर इठला रहा है।

    इधर द्वार पर गई है

    पाँच नन्ही लड़कियों की टोली भी

    मैं उन्हें पहचानती हूँ

    सरूली, चैनी और सुरेखा…

    वे जब-तब अपनी माँ के साथ आती रही हैं

    किसी पुरानी चादर, साड़ी या अनाज की चाह लिए

    मैंने उनके मुँह में गुड़ भरकर मुस्कुराते हुए

    पूछ लिया था एक दिन उनका नाम।

    खाने के बाद पंडित जी हाथ धोने

    आँगन में चले आए हैं

    कड़क कर बोले हैं, ‘क्यों री छोकरियो!

    यहाँ क्यों खड़ी हो, जाओ यहाँ से

    मैं देखती हूँ—

    नन्ही अम्बिकाओं, दुर्गाओं और कालियों के

    मुरझाए उदास मुखों को

    आँगन के भीमल पेड़ से चिपकी

    तामी की आँखों में नमी तैर गई है

    इससे पहले कि तुम्हे अछूत कहकर

    खदेड़ दिया जाए

    आओ नन्ही देवियों

    मैं पूज दूँ तुम्हारे नन्हे पैर

    अपना मस्तक धर दूँ,

    काँटे बिंधे तुम्हारे पैरों पर

    आओ हे देवियो!

    हमारे ब्राह्मणत्व और अहंकार को

    एक ही पदाघात से छिन्न-भिन्न करके भीतर चली आओ।

    आसन ग्रहण करो, प्रसाद पाओ

    और बताओ कि भीतर

    हठीले गौरव से भरी बैठी राजेश्वरी

    और बाहर द्वार पर खड़ी मंगसीरी में

    कोई अंतर नहीं!

    स्रोत :
    • रचनाकार : सपना भट्ट
    • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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