वे आपात स्थितियाँ थीं

we apat sthitiyan theen

सौम्य मालवीय

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वे आपात स्थितियाँ थीं

सौम्य मालवीय

और अधिकसौम्य मालवीय

     

    कोविड-19 महामारी के मद्देनज़र थोपी गई सख़्त तालाबंदी के चलते मज़दूरों के शहरों से महापलायन पर

    आपात स्थितियों को देखते हुए कड़े क़दम उठाए गए और
    यह आदेश हुआ कि लोग घर पर ही रहें
    आपात स्थितियों को समझते हुए लोगों ने पूरे अनुशासन से
    कड़े आदेशों का पालन किया और घर पे ही रहे
    यही नहीं, महीनों घर पर रहने के लिए ज़रूरी सामान भी जुटा लाए
    ज़रूरी था समय की माँग थी घर में भरने की जगह थी,
    आपात स्थितियों को देखते हुए यह आवश्यक पाया गया कि तय किया जाए,
    किनको बचाया जा सकता है और किनसे मुँह फेरा जा सकता है
    घर पे रह रहे लोगों को प्रशासन की यह मजबूरी सहज ही समझ आ गई
    मुँह फेरना उनके वर्ग की चारित्रिक विशेषता थी,
    आराम की हदों के बाहर दुनिया महज़ ख़बर थी
    और वे ख़बरों के उपभोक्ता थे उनके विषय नहीं,
    आपात स्थितियों को देखते हुए यह आदेश हुआ कि
    लोग अपने घरों से ही काम करें
    मौके की नज़ाकत को समझते हुए
    जो घरों से काम कर सकते थे उन्होंने घरों से ही काम किया,
    शिक्षकों ने पाठों के वीडियो बनाये दफ़्तरी काम ईमेल पे हुआ
    सौदे स्काइप पे पटे संविदाओं पे इक़रार व्हाट्सएप पे हुए,
    हाँ किन्हीं वजहों से इंटरव्यू नहीं हुए कहीं
    नियुक्तियाँ नहीं हुईं
    आपात स्थितियों ने यह समझ कायम की कि
    जीवन का सातत्य भले ही भंग हो जाए
    पूँजी और उसे पोसने वाले श्रम का सातत्य बना रहना चाहिए
    यह पूँजी के एकांतवास का दौर था
    सुधिजन आत्ममंथन की सलाह दे रहे थे
    और बड़ी-बड़ी पहुँच वाले लोग टाइम पास के लिए
    छोटी-छोटी ख़ुशियों में जीवन का अर्थ ढूँढ़ रहे थे
    आपातकाल की उस कड़ाई में कुछ ऐसे जंतुओं का भी पता चला
    जो मनुष्यता की ठसाठस भरी श्रेणी में घुसे हुए थे
    और सड़कें नापते हुए मुल्क की सेहत को ख़तरे में डाल रहे थे
    ऐसे लोगों को बेघर कहा जाता था
    उनकी पीठ पर बच्चे और दिलों में धूल हुआ करती थी
    वह आपात स्थितियाँ थीं
    कई सालों पहले, शुक्र है अब वे सामान्य हो चुकी हैं
    कड़े क़दम सहज नियमों में बदल चुके हैं
    सामाजिक दूरी सामाजिकता की शर्त बन गई है
    और काम अब कभी नहीं रुकता
    वैसे भी सामान्यतया तो एक प्याज़ जैसी होती है
    जो छिलका-छिलका आपात स्थितियों से बनी हुई होती है
    अचरज कैसा?
    वे आपात स्थितियाँ थीं
    यह सामान्य काल है
    तब भूख एक उलझन थी
    अब एक बीमारी घोषित हो चुकी है
    बेघर अब नहीं हैं
    जिनके पास घर हैं, वे हैं
    बस वे ही हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : सौम्य मालवीय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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