अभिनेत्री

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बी. गोपाल रेड्डी

बी. गोपाल रेड्डी

अभिनेत्री

बी. गोपाल रेड्डी

और अधिकबी. गोपाल रेड्डी

    वह

    फ़िल्मी नभ में शुक्रतारा-सी चमक उठी

    कई फ़िल्मों में उसने एक साथ किया था अभिनय

    बहु भाषाओं में कई पात्रों का!

    पत्र-पत्रिकाओं ने, दीवारों ने उसका ही नाम लिया था

    युवकों और बुजुर्गों ने थिएटरों को घेर लिया था

    स्वागत की, शतदिवसीय सभाएँ गईं मनाई

    लोगों ने सोचा :

    उसके बिना फ़िल्मों का अस्तित्व नहीं है,

    साथ अभिनय करना अभिनेता का भाग्य बना था,

    उसकी ज़िंदगी रोशनी की गठरी-सी

    फूलों की राह-सी खिल उठी,

    जन्म-दिवस ठाट-बाट से मनाए गए

    ऑटोग्राफ के लिए बच्चों ने घेर लिया,

    सभी ने सोचा

    कि उसका सारा जीवन

    पूर्णिमा के चाँद-सा

    दोपहर के सूरज-सा बीतेगा।

    उसी पर्व में कोने में छिपकर हँसा था कोई

    कानाफूसी की थी

    जीवन सुवर्ण-मृग की मृगया,

    कुहासे के बादलों की छटा है,

    सप्तवर्णी इंद्रचाप

    सौदामिनी का शपथ है।

    पूर्णिमा के चाँद को राहु ने था ग्रस लिया

    मध्याह्न के मार्तंड को बादलों ने ढँक दिया

    सब कुछ निशांत के सुख-स्वप्न सा बिखर गया

    पर्व के महताब ठंडी नींद की गोद में सो गए

    वह बीमार पड़ गई, सारा शरीर सूज गया

    मुख-विभा संध्या कान्ता-सी म्लान हो गई

    फ़िल्मों में अभिनय का कहीं मिलता था आमंत्रण

    अर्जित धन सारा निर्वाह के लिए

    फ़िल्म बनाने में कपूर-सा उड़ गया

    रिश्तेदारों ने बचा-खुचा लूट लिया,

    ढली आयु, भाग्य ने करवट ली

    स्वास्थ्य बिगड़ गया

    महल बेचा, क़र्ज़ चुकाया,

    कम किराए के घर में रहने लगी,

    हुए रिश्तेदार फ़रार।

    देवोपासना, उपवास औ’ तिरुपति की यात्राएँ बन गईं

    बंजर खेत, सूखे फलदायी वृक्ष,

    और खोटे नोट, वसूल होनेवाले 'प्रोनोट'।

    कभी नहीं सोचा उसने

    कि लक्ष्मी इतनी चपला है, चंचला है,

    आशा-सौध सभी ढह गए,

    स्वप्न-तरणी डूब गई

    विलास सभी फूलों से मुरझाए

    सारे वैभव सकुचाए

    जो शेष बचे हैं, वे तो—

    अपने अतीत की आत्मकथा

    अभिनय की अपनी कुशल कला

    अनुभूतियों की मीठी यादें

    भूलों के पछतावे

    परित्यक्त अवसरों के परिहास

    अनुभूत वैभव को स्मृतियाँ।

    एकांतवास के सिंहावलोकनों के

    मील पत्थर बने हुए

    मिथ्या सपनों के घोंसले बने हुए

    कोने में सिमटे स्वागत पत्र

    रात दिवसों के मोमेंटो, चित्रों के अल्बम

    मूक होकर देख रहे हैं जीवन-चक्र को,

    हताश अभिनेत्री को

    एक समय की सौंदर्य-राशि को

    लोकप्रिय सारिका को।

    उसने कभी नहीं सोचा होगा

    कि जीवन मरीचिकाओं का मैदान है,

    इंद्रधनुषों का आकाश है,

    मकड़ी का जाल है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : लोकालोक (पृष्ठ 46)
    • रचनाकार : बी. गोपाल रेड्डी
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 1989

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