पूरी तरह प्रेम नहीं

puri tarah prem nahin

प्रिया वर्मा

प्रिया वर्मा

पूरी तरह प्रेम नहीं

प्रिया वर्मा

और अधिकप्रिया वर्मा

    कहीं एकटक अकेले में

    गुडुप की आवाज़ सुनते हुए याद कर रही हूँ

    अर्धरात्रि की प्रतीक्षा में वह संशय

    जब तुम में डूबते हुए

    मैं अपना अर्थ टटोलती हूँ

    जानती हूँ कि अनुभूति की भाषा में व्याकरण है ही नहीं

    यहाँ प्रेम में कोई नियम नहीं

    केवल उद्दंड अपवादों से भरी एक सूची है

    जिसमें नामकरण के लिए कोई समय नहीं है

    ही एक भी प्रथा है

    जहाँ तय कर सकूँ अपना और तुम्हारा न्याय

    इस अनुभव को मैं पूरी तरह प्रेम भी नहीं कह सकती

    ही कर सकती हूँ तुम्हारी दृष्टि को मेरे प्रति सावधान

    बस तुम्हें सोचते हुए मैं

    नींद से भरे तालाब में उतर सकती हूँ

    प्रार्थना करते हुए कि

    मेरे दिन की प्रतीक्षा का कोई पाप

    तुम्हारी किसी रात को लगे

    और इस प्रार्थना के साथ यह भी

    कि मैं इतनी साधारण बनी रहूँ

    जितना भीड़ का कोई भी आम चेहरा

    जो याद रह जाता हो

    बना रहे मेरे भीतर अवसाद

    बनी रहे कुछ शिकायतें

    जिनके साथ होने से पनपता रहे दुःख

    बाहर के छिछले अंधकार को मैं देती रहूँ धन्यवाद

    कि भीतर के घटाटोप से कम हो तुम—

    इतने कम कि बाहर कहीं तो तुम्हें छू भी सकती हूँ

    पर अपने भीतर इन दो आँखों से

    मैं देख भी नहीं सकती।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रिया वर्मा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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