जादूगर

jadugar

त्रिभुवन

त्रिभुवन

जादूगर

त्रिभुवन

और अधिकत्रिभुवन

    वह हमेशा रहता है अकेला

    वह बिना सीढ़ी के ऊपर चढ़ जाता है

    और दूसरे लोगों की सीढ़ियों को बिना छुए नीचे से खींच लेता है

    वह ज़मीन पर ऐसे रहता है

    जैसे कोई रहता हो ऊँचे आसमान में बने टॉवर पर,

    यह जादूगर युग की शक्तियों को ऐसे टटोलता है

    जैसे दही बिलौती नानी झेरनिए की चौपंखी को

    या जैसे चरख़ा कातते हुए कोई बुढ़िया आठ कमलदल को घुमाती हो

    वह जादू में बिल्कुल विश्वास नहीं करता,

    लेकिन सारा दिन टोटके गणित की तरह शुद्ध करता है

    वह माइनस काे प्लस और प्लस को माइनस कर देता है

    वह कितना भी उतावला हो,

    वह पिसे हुए चूने के साथ ठंडा होकर

    सफ़ेदी में नील की तरह घुल जाता है

    वह इतना पक्का जादूगर है

    कभी सूत, कभी चरख़ी, कभी ताँत, कभी मोगरी

    और कभी-कभी कूकड़ी दिखते हुए पिंजारे का काम करता है

    बेदाग़ भोर में वह हवा की तरह उठता है,

    अपनी झोली में रखे वर्षों, सदियों और सहस्राब्दियों पुराने क्रिस्टल खोलकर

    वह कई बार सूर्य को अपनी मुस्कुराती ढकी हुई वाक्पटुता से पकड़ता है,

    वह अक्सर ऐसे-ऐसे टोटके करता है

    दूर बैठकर किसी और की देह के भीतर

    शांत और निष्क्रिय बैठी इंद्रियों के सम्मोहक साँपों को खोल देता है

    और मंद-मंद मुस्कुराता है

    उसकी कला लंबी है,

    जो यह देखने के लिए भोर में उठती है

    लोग सोचते हैं, जादूगर कभी मौलिक अँधेरे में अपनी ही आग से जल जाएगा

    काठ की आत्मा उस पर एक चिंगारी की तरह प्रहार करेगी

    लोग सोचते हैं, जादूगर उस बोतल में बंद हो जाएगा,

    जिसमें अब तक वह हर जिन्न को अपनी जादूगरी से बंद किए रहता है

    लेकिन मुझे अभी-अभी किसी ने बताया, लोग भ्रम में हैं

    यह वह जादूगर नहीं है, अब यह आँख में हीरे वाला जादूगर है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : त्रिभुवन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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