कीड़ों के बारे में

kiDon ke bare mein

अजंता देव

अजंता देव

कीड़ों के बारे में

अजंता देव

और अधिकअजंता देव

    बालटियों की आवाज़ और साबुन का

    स्वाद पहचानते हैं

    अच्छी तरह मालूम है उन्हें

    आटे की गोलियों में ज़हर के बारे में

    खेत में एकटक घूरते हैं पॉलीथिन की थैलियाँ

    और खोदने लगते हैं और गहरा

    पत्ते कुतरते हुए टपक जाते हैं

    छींटों से बचकर

    नाली की दीवार से चिपक कर

    बहने देते हैं फ़िनायल का घोल

    तरह-तरह के धुएँ में साँस रोकने की कला

    पहले ही सीख चुके हैं

    अब बेहोशी का अभिनय भी

    कमाल का करते हैं

    मैंने कितनी बार देखा है

    रोशनी में भागती छिपती आबादी

    छत पर जाले

    दीवारों पर बिल

    दीमक की बाँबियाँ

    ट्यूबलाइट के ऊपर छिपकली

    अपनी जैव घड़ियाँ इन्होंने मिला रखी है

    हमारी दिनचर्या से

    ठीक आधी रात को घर और शहर

    उनके हवाले होता है

    मनुष्य जब-जब जहाँ-जहाँ

    आराम करते हैं

    तब-तब वहाँ-वहाँ ये काम करते हैं

    इस तरह शताब्दियों से

    हम एक साथ घर-बार कर रहे हैं

    छोटी-मोटी दुश्मनियाँ पाल कर

    इन्हें जल्दी नहीं है

    ये जानते हैं

    यह पृथ्वी पहले भी उनकी थी

    यह पृथ्वी उनकी है बाद में भी

    स्रोत :
    • पुस्तक : राख का क़िला (पृष्ठ 47)
    • रचनाकार : अजंता देव
    • प्रकाशन : वाग्देवी प्रकाशन
    • संस्करण : 2002

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