जो रही अनकही और अनलिखी

jo rahi anakhi aur analikhi

पूरन चंद्र जोशी

पूरन चंद्र जोशी

जो रही अनकही और अनलिखी

पूरन चंद्र जोशी

और अधिकपूरन चंद्र जोशी

    मैं सोचता था

    अब लिखने को बाक़ी

    रहा ही क्या है?

    लिख गए सभी कुछ तो

    आदिकवि के बाद

    लोककवि महाकवि सामान्य कवि

    सभी देशों के सभी भाषाओं के

    सभी युगों के

    किस-किसका नाम लूँ

    आसमान में सितारों की तरह जगमगाते

    अनगिनत कविगण

    बाग़ में बहुरंगी फूलों की तरह

    खिलती कविताएँ

    उन सभी कवियों का ऋणी हूँ

    जिनके शब्दों ने

    वाणी दी है मेरे अनकहे भावों को

    विचारों को

    जिन्हें मैं निरंतर स्मरण कर

    पाता रहा हूँ अवर्णनीय आनंद और उल्लास

    बालपन के उन क्षणों से

    जब मेरा प्रथम परिचय हुआ था

    कविता से

    लेकिन जाने क्यों

    मैं आज भी विकल हूँ

    कुछ कहने के लिए

    जो किसी ने कहा हो

    जो नया हो ताज़ा हो

    चाहे वह हो

    साधारण और सामान्य

    पर मेरा अपना

    इसी सोच में

    लिखने के लिए हाथ में ली गई लेखनी को

    अलग रख

    मैं खो गया अपने विचारों के

    भँवर में

    फिर अकस्मात्

    कौंध गई बिजली-सी मन के आकाश में

    एक आलोक-सा फैला

    और अंदर से जैसे कोई कह रहा हो

    अरे! सुबह तो

    जानी-पहचानी है

    लेकिन फिर भी हर सुबह

    नई है

    पर्वत शृंगों को आलोकित करती

    हर किरण नई है

    परिवर्तन के अटूट क्रम में

    हर दिन है नया

    हर रात है नई

    हर चाँदनी नई है

    आता है बसंत सदा ही

    पर प्रत्येक बसंत की नई है बहार

    और राग-रंग नया

    प्रत्येक बालपन की

    किलकारी है नई

    प्रत्येक नवयौवन की

    उमंग है नई

    युवा आँखों की

    नई है मधु-वृष्टि

    प्रिय की पदचाप की

    नित नई है प्रतिध्वनि

    हर बार नर-नारी के स्पर्श का

    रोमांच है नया

    मौत चिर-परिचित है

    लेकिन हर मौत नई है

    और नया है

    उसका शोक और त्रास

    दुर्भिक्ष के समय

    अन्न अभाव की मौत

    कड़ाके की सर्दी की मौत

    पुराने और नए राेगों की मौत

    गर्भ में ही अजन्मे शिशुओं की मौत

    सुरक्षा-वंचित गर्भवती माँओं की मौत

    जिनका इलाज हो सकता था

    मगर हो सका

    अमीरों की अमीरी से मौत

    ग़रीबों की ग़रीबी से मौत

    प्रेमी युवक-युवतियों द्वारा आत्मदाह की मौत

    नव विवाहिता द्वारा

    दहेज दे पाने की मौत

    बलात्कार की लज्जा

    छिपाने की मौत

    स्वार्थ और दंभ में लड़े गए

    युद्धों में निरर्थक मौत

    मुक्ति-संग्रामों में

    शहादत की मौत

    सब प्रकार की मौत

    जानी-पहचानी है

    लेकिन हर बार नई है

    क्योंकि दिल की तड़पन मन का आक्रोश

    आँखों में आँसू हर बार नए हैं

    मौत के निकट हर व्यक्ति

    रवि ठाकुर की तरह विकल होता है

    और कहता है

    ‘‘मोरते चाइ आमि

    बाचिबे चाई आमि सुंदर भुवने।‘‘

    बचे रहने की लालसा हर बार नई है।

    जीवन का हर क्षण नया है

    हर अनुभव नया है

    इनको हर बार तलाश है

    नई भाषा की

    नए शब्दों की

    नए छंदों की, नए स्वरों की

    छंद के बिना भी वाणी की

    और इन सबको सृजन करने वाले

    नित नए नचनाकारों की

    और इन सबके बावजूद

    उनकी अनगिनत व्यथाएँ हैं

    ख़ुशियाँ हैं अनुभूतियाँ हैं

    जो रह गईं अनकही

    और अनलिखी

    विशेषकर हमारे विभाजित समाज में

    उपेक्षित, वृहत जन समुदाय की

    जिनको शिष्ट समाज

    समझता आया है

    समाज से बाहर यानी ‘इत्यादि’

    ‘इत्यादि’ ही मेरी कविता के विषय हैं

    ‘इत्यादि’ ही मेरी कथा के महानायक हैं

    क्योंकि ‘इत्यादि’ की कथा अभी अनकही है

    महासागर की गहराइयाँ हैं उनकी कथा की

    जिनकी थाह पा सकेंगे

    अनेक महाकवि भी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : इत्यादि जन (पृष्ठ 21)
    • रचनाकार : पूरन चंद्र जोशी
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2012

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