इत्यादि जन

ityadi jan

पूरन चंद्र जोशी

पूरन चंद्र जोशी

इत्यादि जन

पूरन चंद्र जोशी

और अधिकपूरन चंद्र जोशी

    ये हैं

    इत्यादि जन

    जो गाँव के होते हुए भी

    गाँव के नहीं हैं

    आए हैं हम

    बंगाल के

    इस घनी आबादी वाले

    गाँव में

    हाल जानने

    गाँव का

    गाँव के ग़रीबों का

    गाँव में

    दाख़िल होते ही

    स्वागत किया

    गाँव के मुखिया ने

    गाँव के अन्य भद्रजनों के साथ

    ले गया अपनी हवेली में

    तैयारी पूरी थी

    शहर के भद्र लोगों के

    स्वागत-सत्कार की

    पूछते हैं मुखिया से

    ‘एखाने कौ जन आछेन

    एइ ग्राम मध्ये’?

    (कितने लोग बसे हैं इस ग्राम में)

    कहता है मुखिया

    ‘हौबे कुड़ी पचीस कुटुंब’

    (होंगे बीस-पच्चीस परिवार)

    फिर पूछते हैं

    उधर नज़र डालकर

    जिधर ग़रीबों की बस्ती है

    ‘ओखाने तो अनेक जन

    दिखछेन’

    (उधर तो अनेक लोग नज़र आते हैं)

    जवाब मिलता है

    ‘ओ

    आपनी एटसेटराज़ कथा बोलछेन’

    (आप उन इत्यादि जनों की बात कर रहे हैं)

    ‘ओरा तो अनेक आछेन

    पशु पोकार मतो,

    (वो तो अनेक हैं

    पशुओं, कीड़े मकोड़ों की तरह उनकी कोई गिनती नहीं)

    सुनकर

    चकित हैं हम सब

    गाँव का जिनके श्रम, उद्यम, सेवा से

    चलता है सब काम

    वे ही हो गए एटसेटराज़

    यानी इत्यादि जन

    और जो परजीवी हैं

    एकदम ‘इत्यादि जनों’ के ही

    श्रम उद्यम सेवा पर आश्रित

    वे हो गए

    भद्रजन!

    हे अभागे देश!

    यह कैसी विडंबना है

    ‘‘भद्रजन और

    इत्यादि जन’’ का

    यह विभाजन

    देशव्यापी है

    हर गाँव हर शहर में

    क्या इसी सदियों पुराने

    अभिशाप को ढोते हुए

    हम प्रवेश करेंगे

    इक्कीसवीं सदी में भी?

    स्रोत :
    • पुस्तक : इत्यादि जन (पृष्ठ 26)
    • रचनाकार : पूरन चंद्र जोशी
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2012

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