हमारी लाचारी

hamari lachari

असद ज़ैदी

असद ज़ैदी

हमारी लाचारी

असद ज़ैदी

और अधिकअसद ज़ैदी

    जब कोई तय नहीं कर पाया कि कहाँ

    तो अख़ीर में रेल के आरक्षित डिब्बे में

    रखा गया काव्यपाठ

    लोग आते-जाते थे

    मुहाने पर कुछ तमाशबीन जमा थे : अजीब

    अजीब चीज़ें देखने को मिला करती हैं

    रेल के सफ़र में

    सभी उपस्थित कवि यहाँ हमज़ुबान थे

    सब श्रोता थे बल्कि

    सुनते थे इसलिए सब सभी को

    एक-सी कविताएँ सुनाते हुए

    ऐसा तादात्म्य था हमारे दरम्यान

    कि कलपुर्ज़ों का शोर दब दया

    अप्रासंगिक हो गई भारतीय रेल

    और ऐसी थी प्रतियोगिता

    कि मुझे याद आए

    तरही मुशायरे

    मंज़र ऐसा था कि हम रेल में जाते हुए थे

    बैठे थे तख़्त पे जहाँ चादरें चढ़ी थीं

    क़नात ऊँची थी गमले लगे थे

    और कीलें जड़ी थीं

    और तख़्त भी दरअसल तख़्त क्या

    थी एक कोई बड़ी-सी हवादार पालकी

    वे अपनी कविताएँ पढ़ते थे धीरे-धीरे

    और लगभग चीख़ते हुए

    ताकि आने वाली कविताओं के ज़ोर में

    लोग उनको भुला दें

    अब जिनकी बारी थी जो बहुत

    अधीर थे जिन्होंने

    कसके पकड़ रखी थी अपनी बयाज़

    सुना रहे थे वे अपनी

    चुनी हुई रचनाएँ

    और इस तरह हमने सात स्टेशन

    गुज़ार दिए

    आठवाँ स्टेशन कुछ इतना मनहूस मालूम हुआ

    कि हमने पता करना चाहा आख़िर

    क्या बात है और पता चला

    शहर में कर्फ़्यू लगा है

    अजीब-से रोमांच से हम थरथराने लगे

    यह हमारे काव्य के अंदर से उपजी घटना-सी थी

    हमें लगा यह एक ही तारतम्य में है :

    कविता, स्टेशन का सन्नाटा, शहर में कर्फ़्यू

    संयोग की कुछ भी कहिए अपनी सत्ता होती है

    जो कैफ़ियत कविता से शुरू होती है कर्फ़्यू में

    जारी रहती है

    संयोग इस जहान में हार्मोनी लाता है

    संयोग हिंदीवालों को उचित पारिश्रामिक दिलवाता है

    संयोग हमारी मसीहाई के रहस्य को

    गाढ़ा बनाता है

    मिल ही जाती हैं हमें चीज़ें जिन्हें हम

    चाहते हैं ׃ चाहने लगते हैं हम

    उन्हें चीज़ों को भई जो हमें मयस्सर हैं

    इसी एक सामूहिक ख़ुशी से हम झनझना रहे थे

    लेकिन क्या बताएँ रसस्खलन गोपनीय था

    और हम एक दूसरे पर उसे प्रकट नहीं कर सकते थे।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सरे−शाम (पृष्ठ 106)
    • रचनाकार : असद ज़ैदी
    • प्रकाशन : आधार प्रकाशन
    • संस्करण : 2014

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए