यह ख़रीद लीजिए प्लीज़!

ye kharid lijiye pleez!

विनय सौरभ

विनय सौरभ

यह ख़रीद लीजिए प्लीज़!

विनय सौरभ

और अधिकविनय सौरभ

    पूरी दुनिया में चक्कर काटने के बाद

    सुष्मिता सेन हमारे घर की स्त्रियों के लिए

    एक नायाब चीज़ ढूँढ़ लाईं

    उस सेनेटरी नैपकिन के बारे में उम्दा ख़्याल रखते हुए उसने बताया—

    यह ख़रीद लीजिए, यह सबसे अच्छा है!

    यह सबसे अच्छा है! वंडरफुल!

    इसे तो आप ख़रीद ही लें!

    एक साबुन की झाग में अर्धनग्न एश्वर्य राय ने पुलक में भरकर कहा

    एक जूते से पूरे विवस्त्र शरीर को कलात्मक ढंग से ढँकते हुए मधु सप्रे की आँखों में आवारगी और आमंत्रण था—

    यही लीजिए, मेरी तरफ़ टिकाऊ ख़ूबसूरत और मज़ेदार!

    गर्दन उरोजों और सुडौल टाँगों पर उँगलियाँ फिराते हुए मिस फेमिना ने मर्दो को बताया— इससे मुलायम और क्या हो सकता है भला! सेविंग के लिए प्लीज़ यह ब्लेड लीजिए!

    इसका एहसास कितना ख़ूबसूरत है!

    काश मैं बता सकती आपको...

    नशीली आँखों से एक कंडोम के अनुभव को साकार करते हुए पूजा बेदी ने कहा—आप अगली बार यही आजमाएँगे, आई होप!

    नौ गज़ की साड़ी पूरे बदन पर लपेटने के बाद भी नंगी पीठ दिखलाती हुई संगीता बिजलानी मुस्कुरा रही थीं—हाय यह मेरी तरह हल्की है इसे लीजिए ना!

    मैं छह बच्चों की माँ हूँ!

    पर मेरे बालों की चमक तो देखिए!

    एक शैम्पु की दुनिया में

    अब शोभा डे भी महक रही थीं और उनके भी होंठ

    उसे ख़रीद लेने के अनुरोध और उत्तेजना में काँप रहे थे

    ***

    ये आम स्त्रियों की तरह ही हाड़ माँस की औरतें थीं पर उन्मादित ढंग से हमारी दुनिया में बेख़ौफ़ गई थीं

    इनका ख़ास मक़सद हमारी बेरौनक दुनिया को सुंदर बनाना था

    यह महकती हुईं औरतें थीं—

    युवा और आकर्षक!

    उकताहट से परे ज़िंदादिल और आत्मविश्वास से भरी हुईं,

    जो बाज़ार को घर ले आने की सारी कलाएँ जानती थीं

    इनकी उंगलियाँ गीले आटे के एहसास से नवाकिफ़ थीं

    इन्हें अपने बच्चों को तैयार करके स्कूल भेजने की ज़ल्दी में नहीं जीना था और ना ऑफ़िस जाते पतियों के लिए टिफ़िन तैयार करना था

    ये वो पिलपिली नहीं थीं जिन्हें डॉक्टर के पास बनिए के पास रोज़ के सौदा सुलफ़ के लिए जाना था

    उनके भीतर निरंतर फैलता हुआ एक इत्मीनान था

    रोज़मर्रा की चीज़ों के लिए परिचित और लिजलिजा अफ़सोस नहीं

    इन्हें सोहर नहीं गाना था व्रत नहीं रखने थे!

    ये छोटी-मोटी अधूरी आकांक्षाओं की मारी स्त्रियाँ नहीं थीं

    छोटे-छोटे सुखों के लिए आह भरती कुंठा नहीं थीं

    संभवतः ये चाँद से उतरी थीं और सितारों से मुख़ातिब थीं

    हमारी दुनिया को थोड़ा और बेहतर बनाने के लिए रूमानियत से लबालब पैमाना थीं सुनहरा अवसर थीं—जिसे हम सब को चुकना नहीं था

    यह हमारे घर की स्त्रियों लड़कियों के लिए सपना थीं

    जीवन का मकसद थीं, जिन्हें हर हाल में उन्हें पूरा करना था

    यह संस्कृति की भाषा में बाज़ार थीं

    बाज़ार की भाषा में उत्तेजना

    विज्ञापन की भाषा में बाग़ का ताज़ापन थीं

    ये नई बाज़ार व्यवस्था का रुमान थीं

    बेहद शालीन ढंग से उच्छृंखल होती स्त्रियाँ थीं

    ये औरतें एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी थीं

    जिन्हें काफ़ी संभालकर सावधानी और समझदारी के साथ उतारा गया था सुंदर और ख़ुशहाल बनाने को हमारी दुनिया में...

    ***

    अब आपका झूँझलाना व्यर्थ है!

    यह औरतें तब एक महज अनुरोध थीं

    सिर्फ़ एक नादान शख़्सियत!

    आप ही के शब्दों में शालीनता की परिभाषा थीं

    गौर कीजिए...

    वे चोर दरवाज़े से नहीं आई थीं हमारे घरों में

    आपने उन्हें आते हुए देखा था सामने से

    आप ने ही उन्हें गले लगाकर दरवाज़े से भीतर बुलाया था

    फिर आपने ही उन युवा आकर्षक आक्रामक और स्वप्न में डूबी अवास्तविक औरतों से कल्पना में प्रेम किया था

    आपने ही सबसे पहले उत्साह में पत्नी का कंधा दबाते हुए उन औरतों के बारे में कहा था कोई हौसलेमंद वाक्य

    तब ये अनुरोध करती औरतें आपके दरवाज़े पर खड़ी थीं

    स्रोत :
    • रचनाकार : विनय सौरभ
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए