विष्णु चंद्र शर्मा का वोट

wishnu chandr sharma ka wote

संजय चतुर्वेदी

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विष्णु चंद्र शर्मा का वोट

संजय चतुर्वेदी

और अधिकसंजय चतुर्वेदी

    उस दिन विष्णु चंद्र शर्मा से पुनः परिचय हुआ

    देश की साहित्य अकादेमी के सभागार के बाहर

    अपने स्वयं प्रकाशित कविता-संग्रह की प्रतियाँ वितरित कर रहे थे

    सहयोग राशि थी पंद्रह रुपए

    मनुष्यों के आपसी संबंध अजीब तरह से सुधर रहे हैं

    और तमाम लड़ाइयों को ख़त्म कर देने वाली लड़ाइयों के बाद भी

    शोषण का युग लंबा ही होता जा रहा है

    पिछले दिनों प्रगति मैदान पर पुस्तक मंडी में

    क़ब्ज़ा करती किताब कंपनियों के मंडप लगे

    जहाँ कोई हफ़्ता भर

    कारोबार के लगभग सभी कामयाब लेखकों का अखंड मुजरा चला

    और प्रतिरोध की कविता के नाम पर

    महाकवियों ने सेक्सी-सेक्सी आवाज़ें निकालीं

    मंडी उखड़ने तक

    ख़बर है करोड़ों रुपया इधर से उधर हुआ

    किताब कंपनियाँ जिस बात का बस सपना ही देख सकती थीं

    उसे साकार किया उनके क़लमकारों ने

    उनके हुनर से आज

    साहित्य काफ़ी कुछ पुस्तक-पुरस्कार माफ़िया की गिरफ़्त में

    और उनके शील से आज

    हिंदी किताबों का कारोबार

    संसार के कुछ सर्वाधिक अनैतिक कारोबारों में से एक है

    लेखक समाज भी अब लेखन का आकलन बायोडेटा से करता है

    बायोडेटा पुरस्कारों से वज़न पाता है

    पुरस्कार पुस्तकों पर मिलते हैं

    पुस्तकों की एक केंद्रीय मंडी है

    जहाँ से शब्द के आढ़तियों का देशव्यापी नेटवर्क

    समकालीन लेखन को दिशा दे रहा है

    और लेखन के प्रतिनिधि पुरुष?

    उनका तो रास्ता निकला ही इधर से

    मंडी में जाकर ग़ौर से देखो

    कोई शकरकंदी का हलुआ खा रहा है

    कोई शलगम का सूप पी रहा है

    विश्वविद्यालयों में सरकारी इदारों में

    दूतावासों में अख़बारों में

    और कई पोशीदा बाग़ों-बहारों में

    संस्कृति और साहित्य के नाम पर

    आपसी मुनाफ़े का जो अभेद्य-सा जाल है

    आज साहित्य के एक निकम्मे दफ़्तर के बाहर

    उस जाल को हिला रहा था विष्णु चंद्र शर्मा

    और बिना मुनाफ़े

    कारोबार से बाहर के लोगों में बाँट रहा था

    अपनी कविताओं की किताब

    जैसे परिणाम जानकर भी

    जाल को हिलाती हो कोई मछली।

    स्रोत :
    • रचनाकार : संजय चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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